Friday, March 28, 2014

आज का श्लोक, ’सुदुर्लभः’ / 'sudurlabhaH'

आज का श्लोक, ’सुदुर्लभः’ / 'sudurlabhaH'
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’सुदुर्लभः’ / 'sudurlabhaH' अत्यन्त दुर्लभ, बिरला ही कोई,

अध्याय 7, श्लोक 19,

बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः
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(बहूनाम् जन्मनाम्-अन्ते ज्ञानवान् माम् प्रपद्यते ।
वासुदेवः सर्वम्-इति सः महात्मा सुदुर्लभः ॥)
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भावार्थ :
बहुत से जन्मों (और पुनर्जन्मों) के बाद, अन्त के जन्म में तत्वज्ञान को प्राप्त हुआ मनुष्य मेरी ओर आकर्षित होता है, मुझे भजता है । ऐसा वह मनुष्य, जिसकी दृष्टि में सब कुछ केवल वासुदेव ही होता है, वह महात्मा अत्यन्त ही दुर्लभ होता है ।
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टिप्पणी :
’वासुदेव’ शब्द का तात्पर्य दो प्रकार से ग्रहण किया जा सकता है । ’निवसति यो हृदये सर्वस्मिन् / सर्वेषु’ के अनुसार सारे भूतमात्र में विद्यमान देव / ईश्वर अर्थात् चैतन्य-तत्व, और ’वसुदेव का पुत्र श्रीकृष्ण’ ।
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’सुदुर्लभः’ / 'sudurlabhaH' - a very rare,

Chapter 7, shloka 19,
bahUnAM janmanAmante
jnAnavAnmAM prapadyate |
vAsudevaH sarvamiti
sa mahAtmA sudurlabhaH ||
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After many births (and rebirths) in the last birth, the jnAnI (Man who has attained the wisdom and Me as well) realizes Me as vAsudeva, The Consciousness Supreme, who abides ever in the hearts of all beings.
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Note : the word 'vAsudeva' may be taken in two ways;
The son of vasudeva, -kRShNa, And One who dwells as Consciousness in the heart of all.
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