Monday, March 17, 2014

आज का श्लोक, ’स्तेनः’/ 'stenaH'

आज का श्लोक,  ’स्तेनः’/ 'stenaH'
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’स्तेनः’/ 'strenaH' - चोर, किसी वस्तु का मूल्य चुकाए बिना ही उसका उपभोग करनेवाला ।

अध्याय 3, श्लोक 12,

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविता ।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः ॥
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(इष्टान् भोगान् हि वः देवाः दास्यन्ते यज्ञभाविताः ।
तैः दत्तान् अप्रदाय एभ्यः यः भुङ्क्ते स्तेनः एव सः ॥)
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भावार्थ :
यज्ञ के द्वारा प्रसन्न हुए देवता तुम्हारे द्वारा इच्छित भोग अवश्य ही तुम्हें प्रदान करेंगे । जो मनुष्य उन देवताओं द्वारा प्रदत्त इन भोगों का उपभोग उन्हें प्रसन्न किए बिना ही करता है, वह चोर है ।
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’स्तेनः’/ 'strenaH' - thief,

iShTAnbhogAnhi wo devA
dAsyante yajnabhAvitAH |
tairdattanapradAyaibhyo
yo bhunkte stena eva saH ||
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Meaning : When fostered and propitiated by sacrifices (yajna) those dieties (that are the Lords of different subtle divine spheres), will sure endow upon you the enjoyments you desire for. One who enjoys these gifts obtained from them, without offering their due homage, is indeed a thief.
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