आज का श्लोक ’सुलभः’ / 'sulabhaH'
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’सुलभः’ / 'sulabhaH' - प्राप्तव्य, प्राप्य,
अध्याय 8,श्लोक 14,
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अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥
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(अनन्यचेताः सततं यः माम् स्मरति नित्यशः ।
तस्य अहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥)
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भावार्थ :
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हे अर्जुन! जो मनुष्य मुझमें अनन्यचित्त होकर सदा ही और निरन्तर मुझको स्मरण करता है, उस नित्य-निरन्तर मुझसे संलग्न हुए योगी के लिए, मैं सदा और अनायास ही प्राप्तव्य हूँ ।
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’सुलभः’ / 'sulabhaH' -accessible, available, approachable,
--
Chapter 8, shloka 14,
ananyachetAH satataM yo
mAM smarati nityashaH |
tasyAhaM sulabhaH pArtha
nityayuktasya yoginaH ||
--
Meaning :
O partha (arjuna) ! I am easily available to one, who-so-ever always remembers Me without deviation, because of his constant association (bhakti-yuktaH) with Me.
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’सुलभः’ / 'sulabhaH' - प्राप्तव्य, प्राप्य,
अध्याय 8,श्लोक 14,
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अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥
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(अनन्यचेताः सततं यः माम् स्मरति नित्यशः ।
तस्य अहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥)
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भावार्थ :
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हे अर्जुन! जो मनुष्य मुझमें अनन्यचित्त होकर सदा ही और निरन्तर मुझको स्मरण करता है, उस नित्य-निरन्तर मुझसे संलग्न हुए योगी के लिए, मैं सदा और अनायास ही प्राप्तव्य हूँ ।
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’सुलभः’ / 'sulabhaH' -accessible, available, approachable,
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Chapter 8, shloka 14,
ananyachetAH satataM yo
mAM smarati nityashaH |
tasyAhaM sulabhaH pArtha
nityayuktasya yoginaH ||
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Meaning :
O partha (arjuna) ! I am easily available to one, who-so-ever always remembers Me without deviation, because of his constant association (bhakti-yuktaH) with Me.
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