आज का श्लोक, ’सुरगणाः’ / 'suragaNAH'
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’सुरगणाः’ / 'suragaNAH'
अध्याय 10, श्लोक 2,
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।
अहं आदिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥
--
(न मे विदुः सुरगणाः प्रभवम् न महर्षयः ।
अहम् आदिः हि देवानाम् महर्षीणाम् च सर्वशः ॥)
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भावार्थ :
मेरी उत्पत्ति (आविर्भाव) को न तो सुरगण जानते हैं, और न ही कोई भी महर्षि । क्योंकि मैं ही सब प्रकार से देवताओं का तथा महर्षियों का भी आदि कारण हूँ ।
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’सुरगणाः’ / 'suragaNAH' - the various divine entities,
Chapter 10, shloka 2,
na me viduH suragaNAH
prabhavaM na maharShayaH |
ahamAdirhi devAnAM
maharShINAM cha sarvashaH ||
--
Neither the various celestial beings / divine entities, nor the great sages know My origin, because I AM the very origin of all those divine entities and the Great sages.
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’सुरगणाः’ / 'suragaNAH'
अध्याय 10, श्लोक 2,
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।
अहं आदिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥
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(न मे विदुः सुरगणाः प्रभवम् न महर्षयः ।
अहम् आदिः हि देवानाम् महर्षीणाम् च सर्वशः ॥)
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भावार्थ :
मेरी उत्पत्ति (आविर्भाव) को न तो सुरगण जानते हैं, और न ही कोई भी महर्षि । क्योंकि मैं ही सब प्रकार से देवताओं का तथा महर्षियों का भी आदि कारण हूँ ।
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’सुरगणाः’ / 'suragaNAH' - the various divine entities,
Chapter 10, shloka 2,
na me viduH suragaNAH
prabhavaM na maharShayaH |
ahamAdirhi devAnAM
maharShINAM cha sarvashaH ||
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Neither the various celestial beings / divine entities, nor the great sages know My origin, because I AM the very origin of all those divine entities and the Great sages.
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