Wednesday, March 12, 2014

आज का श्लोक, ’स्थावराणाम्’ / 'sthAvarANAM'

आज का श्लोक  ’स्थावराणाम्’ / 'sthAvarANAM'
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’स्थावराणाम्’ / 'sthAvarANAM

अध्याय  10,  श्लोक 25,
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महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥)
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(महर्षीणाम् भृगुः अहम् गिराम् अस्मि एकम् अक्षरम् ।
यज्ञानाम् जपयज्ञो अस्मि स्थावराणाम् हिमालयः ॥)
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भावार्थ :
महर्षियों में मैं महर्षि भृगु, शब्दों (वाणियों में) में हूँ एक अक्षर (ॐकार), सब प्रकार के यज्ञों में (समान रूप से विद्यमान) जप-यज्ञ हूँ, स्थावरों में हिमालय पर्वत ।
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’स्थावराणाम्’ / 'sthAvarANAM' - of immoveables,
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Chapter 10, shloka 25,
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maharShINAM bhRgurahaM
girAmasmyekamakSharaM |
yajnAnAM japayajno'smi
sthAvarANAM himAlayaH ||
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Meaning :
Of the great sages, I AM maharShi bhRgu, of sounds I AM the Only prime sound 'OM'. Of sacrifices I AM 'japa', - the chanting of the holy names / words, and of the immovable, I AM the Himalayas.
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