Wednesday, July 31, 2019

अतिमानिता, अतिरिच्यते, अतिवर्तते

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index
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अतिमानिता 16/3,
अतिरिच्यते 2/34,
अतिवर्तते 6/44, 14/21,
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अतितरन्ति, अतिनीचम्, अतिमानः,

श्रीमद्भगवद्गीता
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अतितरन्ति 13/25,
अतिनीचम् 6/11,
अतिमानः 16/4,
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अतन्द्रितः, अतपस्काय, अतः

श्रीमद्भगवद्गीता
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अतन्द्रितः 3/23,
अतपस्काय 18/67,
अतः 2/12, 9/24, 12/8, 13/11, 15/18,
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अज्ञानेन, अणीयांसम्, अणोः, अतत्त्वार्थवत्

श्रीमद्भगवद्गीता
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अज्ञानेन 5/15,
अणीयांसम्  8/9,
अणोः 8/9,
अतत्त्वार्थवत् 18/22,
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अज्ञानम्, अज्ञानाम्,

श्रीमद्भगवद्गीता
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अज्ञानम् 5/16, 13/11, 14/16, 14/17, 16/4,
अज्ञानाम् 3/26,
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अज्ञानसंभूतम्, अज्ञानसंमोहः

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index,
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अज्ञानसंभूतम् 4/42,
अज्ञानसंमोहः 18/72,
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अज्ञः, अज्ञानजम्, अज्ञानविमोहिताः

श्रीमद्भगवद्गीता
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अज्ञः 4/40,
अज्ञानजम् 10/11, 14/8,
अज्ञानविमोहिताः 16/15,
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अजः, अजानता, अजानन्तः

श्रीमद्भगवद्गीता
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अजः 2/20, 4/6,
अजानता 11/41,
अजानन्तः 7/24, 9/11, 13/25,
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अच्युत, अजस्रम्, अजम्

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम-Index 
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अच्युत 1/21, 11/42, 18/73,
अजस्रम् 16/19,
अजम् 2/21, 7/25, 10/3, 10/12,
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अचिरेण, अचेतसः, अच्छेद्यः

श्रीमद्भगवद्गीता
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अचिरेण 4/39,
अचेतसः 3/32, 15/11, 17/6,
अच्छेद्यः 2/24,
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अचिन्त्यरूपम्, अचिन्त्यम्, अचिन्त्यः

श्रीमद्भगवद्गीता
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अचिन्त्यरूपम् 8/9,
अचिन्त्यम् 12/3,
अचिन्त्यः 2/25,
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अचला, अचलाम्, अचलेन, अचापलम्

श्रीमद्भगवद्गीता
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अचला 2/53,
अचलाम् 7/21,
अचलेन 8/10,
अचापलम् 16/2,
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अचलप्रतिष्ठम्, अचलम्, अचलः

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index 
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अचलप्रतिष्ठम् 2/70,
अचलम् 6/13, 12/3,
अचलः 2/24,
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अघम्, अघायुः, अङ्गानि, अचरम्

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index
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अघम् 3/13,
अघायुः 3/16,
अङ्गानि 2/58,
अचरम् 13/15,
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अग्निः, अग्नौ,

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index
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अग्निः 4/37, 8/24, 9/16, 11/39, 18/48,
अग्नौ 15/12,
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अखिलम्, अगतासून्, ,

श्रीमद्भगवद्गीता
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अखिलम् 4/33, 7/29, 15/12,
अगतासून् 2/11,
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अक्षरः, अक्षराणाम्, अक्षरात्

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index
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अक्षरः 8/21, 15/16,
अक्षराणाम् 10/33,
अक्षरात् 15/18,
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Tuesday, July 30, 2019

अक्षरसमुद्भवम्, अक्षरम्

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index 
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अक्षरसमुद्भवम् 3/15,
अक्षरम् 8/3, 8/11, 10/25, 11/18, 11/37, 12/1, 12/3,
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अक्लेद्यः, अक्षयम्, अक्षयः

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index 
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अक्लेद्यः 2/24,
अक्षयम् 5/21,
अक्षयः 10/33,
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अकृतेन, अकृत्स्नविदः, अक्रियः, अक्रोधः,

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index 
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अकृतेन 3/18,
अकृत्स्नविदः 3/29,
अक्रियः 6/1,
अक्रोधः 16/2,
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अकुर्वत, अकुशलम्, अकृतबुद्धित्वात्, अकृतात्मानः

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index 
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अकुर्वत 1/1,
अकुशलम् 18/10,
अकृतबुद्धित्वात् 18/16,
अकृतात्मानः 15/11,
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अकार्यम्, अकीर्तिकरम्, अकीर्तिम्, अकीर्तिः

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index
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अकार्यम् 18/31,
अकीर्तिकरम् 2/2,
अकीर्तिम् 2/34,
अकीर्तिः 2/34,
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अकर्मणः, अकर्मणि, अकल्मषम्, अकारः

श्रीमद्भगवद्गीता -
अकारादिशब्दानुक्रमणिका
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अकर्मणः 3/8,
अकर्मणि 4/17,
अकल्मषम् 6/27,
अकारः 10/33
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अकर्तारम्, अकर्म, अकर्मकृत्

श्रीमद्भगवद्गीता -
अकारादिशब्दानुक्रमणिका
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अकर्तारम्  4/13, 13/19,
अकर्म 4/16, 4/18,
अकर्मकृत् 3/5   
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Monday, July 15, 2019

Srijan Talks.

याचि देही याचि डोळा ...      
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अस्मिन्देहे अनयोः नेत्रयोः
इहैव तैर्जितो लोको ...
( 5/19, 6 /6 , 6/7)  
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In this very body,
Through these very eyes !
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Tuesday, July 2, 2019

सात्त्विकी, राजसी, तामसी बुद्धि

बुद्धिधर्म 
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With a purpose to avoid repetition, giving here the link to the related श्लोक / stanza referred to in this post.
For the the English transliteration and Meaning please check the labels :
18/30, 18/31, 18/32 .
अध्याय 18 
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये।
बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी।।30
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अर्थ : किसी भयपूर्ण अथवा निर्भय मनःस्थिति में, -करने योग्य कर्म में प्रवृत्त होना या न होना, और / या उससे निवृत्त होना, तथा उस प्रवृत्ति अथवा निवृत्ति से जुड़े बंधन अथवा मुक्ति को जाननेवाली बुद्धि हे पार्थ ! सात्त्विकी होती है।
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यया धर्ममधर्मं च कार्यं चाकार्यमेव च।
अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी।।31
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अर्थ : जिस बुद्धि से क्या धर्म है, क्या अधर्म, क्या किया जाना उचित है, और क्या किया जाना अनुचित है, -इसे यथावत् नहीं जाना जाता, वह बुद्धि हे पार्थ ! राजसी होती है।
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अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता।
सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी।।32
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अर्थ : जो बुद्धि अधर्म को धर्म मान्य कर बैठती है ऐसी अंधकाराच्छन्न बुद्धि, जो सभी तात्पर्यों को उनके वास्तविक अर्थ को विपरीत ग्रहण करती है, हे पार्थ ! तामसी होती है।
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Religion in the Disguise of 'Dharma'
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For whatever historical, political or intellectual reasons, the word 'Religion' has been treated as synonymous with 'Dharma'.
This has greatly harmed to the humans at the world-level.
Then we have to talk of religious disharmony, secularism and 'respect for all religions', 'tolerance' and 'intolerance'.
This has political implications and repercussions.
A Politically motivated mind is the one, that is described in the above-mentioned :
श्लोक / stanza 31.
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