बुद्धिधर्म
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With a purpose to avoid repetition, giving here the link to the related श्लोक / stanza referred to in this post.
For the the English transliteration and Meaning please check the labels :
18/30, 18/31, 18/32 .
अध्याय 18
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये।
बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी।।30
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अर्थ : किसी भयपूर्ण अथवा निर्भय मनःस्थिति में, -करने योग्य कर्म में प्रवृत्त होना या न होना, और / या उससे निवृत्त होना, तथा उस प्रवृत्ति अथवा निवृत्ति से जुड़े बंधन अथवा मुक्ति को जाननेवाली बुद्धि हे पार्थ ! सात्त्विकी होती है।
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यया धर्ममधर्मं च कार्यं चाकार्यमेव च।
अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी।।31
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अर्थ : जिस बुद्धि से क्या धर्म है, क्या अधर्म, क्या किया जाना उचित है, और क्या किया जाना अनुचित है, -इसे यथावत् नहीं जाना जाता, वह बुद्धि हे पार्थ ! राजसी होती है।
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अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता।
सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी।।32
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अर्थ : जो बुद्धि अधर्म को धर्म मान्य कर बैठती है ऐसी अंधकाराच्छन्न बुद्धि, जो सभी तात्पर्यों को उनके वास्तविक अर्थ को विपरीत ग्रहण करती है, हे पार्थ ! तामसी होती है।
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Religion in the Disguise of 'Dharma'
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For whatever historical, political or intellectual reasons, the word 'Religion' has been treated as synonymous with 'Dharma'.
This has greatly harmed to the humans at the world-level.
Then we have to talk of religious disharmony, secularism and 'respect for all religions', 'tolerance' and 'intolerance'.
This has political implications and repercussions.
A Politically motivated mind is the one, that is described in the above-mentioned :
श्लोक / stanza 31.
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