यदा संहरते चायं
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यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।
यहाँ हृ - हरति / हरते
का आत्मनेपदी धातु के रूप में प्रयोग दृष्टव्य है।
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति (Manifestation) तथा प्रलय (Dissolution) इस अर्थ में सृजन और विलय है न कि निर्माण और विनाश।
यह न केवल व्यष्टि बल्कि समष्टि ब्रह्माण्ड के लिए भी सत्य है।
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