Tuesday, July 20, 2010

॥ गीता में कवि ॥

~~~~~~~ ॥ गीता में कवि ॥ ~~~~~
_________________________________
*********************************

मैं नहीं सोचता कि कविता कालजयी होती होगी
कविता में ऐसी कल्पना शायद कविता को अधिक
सार्थकता देती होगी, बस उतने में संतुष्ट होना काफ़ी
है
इस बारे में गीता के विचार जानने की उत्सुकता हुई,
और देखा तो पढ़ा -
किं कर्म किम् अकर्म-इति कवयो-अपि अत्र मोहिताः
तत् ते कर्म प्रवक्ष्यामि यत् ज्नात्वा मोक्ष्यसे अशुभात्
-अ४श्लोक१६
आद्य शंकराचार्य ने यहाँ कवि का अर्थ मेधावी किया है
काम्यानाम् कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदु:
----- अ१८श्लोक२
यहाँ कवि का अर्थ पन्डित किया है
कविं पुराणम् अनुशासितारम् अणोः अणीयान् समनुस्मरेत् यः
------अ८श्लोक९
यहाँ कवि का अर्थ क्रान्तदर्शी तथा सर्वज्ञ किया है
और अंत में-
वृष्णीनाम् वासुदेवो-अस्मि ----------
मुनीनाम्---------------- कवीनां उशना कविः
-----अ१०श्लोक३७
कुछ नया लिखने की दृष्टि से मैंने यह प्रयास किया है
चूँकि अपर्णाजी ने टैग किया इसलिए साहस कर रहा हूँ।


____________________________________
************************************




(*मूलत: फेसबुक की एक मित्र सुश्री अपर्णा मनोज
के द्वारा कविता के संबंध में अपने विचार व्यक्त 
करने के लिए किये गए अनुरोध के प्रत्युत्तर में व्यक्त 
मेरे विचार.)  

3 comments:

  1. Sanskrit sholk ka arth bhi samjha dete vinay ji to ham jaiso ke liye saralta hoti

    ReplyDelete
    Replies
    1. PriyAji, Ap agalI posts dekhiye, comment ke lie dhanyawaad, thanks.

      Delete
  2. प्रियाजी,
    बहुत दिनों बाद इस ब्लॊग पर आना हुआ, अब उम्मीद है कि ’श्लोकों’ का अर्थ प्रस्तुत कर पाऊँगा । सादर,

    ReplyDelete