क्या अश्वत्थ पीपल है?
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अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।।२६।।
इस श्लोक में यद्यपि अश्वत्थ का उल्लेख है किन्तु वह पीपल है या वटवृक्ष / बड़ / बरगद है यह स्पष्ट नहीं है।
भगवान् बुद्ध को जिस बोधिवृक्ष के नीचे आत्मज्ञान हुआ वह संभवतः पीपल ही है जिसकी एक शाखा को सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा के हाथों श्रीलंका भेजा था।
बोधगया का वह बोधिवृक्ष शायद पीपल है, बरगद नहीं।
गूगल पर बोधिवृक्ष लीफ की इमेज देखेंगे तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि बोधिवृक्ष पीपल है, बरगद नहीं है।
बचपन से श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ता रहा हूँ, वह भी संस्कृत में। फिर कभी कभी गीताप्रेस से प्रकाशित उस गुटके में लिखे अर्थ से गीता के श्लोकों का तात्पर्य भावार्थ क्या है इसे समझने का यत्न भी किया करता था।
उस गुटके में अश्वत्थ का अर्थ "पीपल" बतलाया गया है, किन्तु उसकी जड़ों का जैसा वर्णन है वैसी जड़ें तो बड़ के वृक्ष की ही होती हैं -
श्रीभगवानुवाच
ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थः प्राहुरव्ययम्।।
छन्दाँसि यस्य पर्णानि यस्तद्वेद स वेदवित्।।१।।
अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा
गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः।।
अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि
कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके।।२।।
किसी ने बतलाया बरगद "सूर्य-वृक्ष" है -
DharmaLive YouTube पर।
तदनुसार और गीता के उपरोक्त श्लोकों के अनुसार बड़ या बरगद, -- अश्वत्थ ही सूर्य-वृक्ष हो सकता है, पीपल नहीं। कर्म जैसे परस्पर बँध जाते हैं, अश्वत्थ की जड़ें भी ऊपर और नीचे भी वैसे ही परस्पर मिल जाती हैं। इसी तरह सूर्य की किरणें भी परस्पर मिल जाती हैं किरणों से पुनः किरणें इसी प्रकार निकलती हैं।
Physics / भौतिक विज्ञान में भी Optics में प्रकाश के Polarization and Interference of Light rays के सिद्धान्त में इसे इसी प्रकार से देख सकते हैं।
न रूपमस्येह तथोपलभ्यते
नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।।
अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल-
मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा।।३।।
ततः पदं तत् परिमार्गितव्यः
यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।।
तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये
यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी।।४।।
श्लोक २ और ४ में "प्रसृता" शब्द का प्रयोग दृष्टव्य है।
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