तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ....
Yajna in Corona Times:
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First let us narrate the above stanzas :
पहले हम इन दो श्लोकों का वाचन करें।
ये क्रमशः इस प्रकार से हैं :
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्।। १५
एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।। १६
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इस कोरोना-काल में O2, प्राणवायु (आक्सीजन) का महत्व अत्यन्त बढ़ गया है।
पानी के इलेक्ट्रोलिसिस से आक्सीजन का उत्पादन औद्योगिक स्तर किया जा सकता है। इसके ही साथ अनायास ही हाइड्रोजन H2 भी प्राप्त हो जाती है।
इस प्रकार से इन दोनों गैसों को प्राप्त करने के लिए सौर-विद्युत का प्रयोग किया जा सकता है।
सौर-विद्युत को पैदा करने के लिए जिन फ़ोटो-वोल्टैइक सेल का प्रयोग किया जाता है, उनके मूल घटकों को रिसायकल किया जा सकता है। आजकल प्रचलन में आ रही ईवी (EV) के साथ वही समस्या है, जो कि मोबाइल की बेट्रियों में होती है। उन्हें रिसायकल करना शायद कठिन है। वे धरती को और अधिक विषाक्त करते हैं।
किन्तु यदि ईवी (EV) के स्थान पर यदि प्रदूषण-रहित हाइड्रोजन से चलने वाले वाहन विकसित किए जाएँ, तो इससे वातावरण में प्रदूषण भी नहीं फैलेगा ।
इस प्रकार यह कर्म यज्ञ का ही एक प्रकार होगा।
यह हुआ सिद्धान्त ।
यह कितना व्यावहारिक है इसे तो वैज्ञानिक प्रयोग और परीक्षण से ही तय किया जा सकता है।
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The idea is :
Oxygen could be generated through the electro-lysis of water. Thereby we also get hydrogen as yet another useful by-product or rather a fuel.
This electrolysis could be done by means of the solar electricity.
The solar electricity is produced by means of photi-voltaic cells, which (as in the case of mobile batteries) creates junk lithium or other such materials.
But when the solar electricity is produced by such a means, we could recycle ♻ the same.
The hydrogen could replace the fuels used in vehicals. This way there will be zero pollution and carbon-emission as well.
Of course this is only a suggestion.
The idea could be translated into reality if the scientists and technicians find out how this could meet the criteria of feasibility, viability and cost factors.
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