नाना मतं महर्षीणां...
मेरे मनोयान ब्लॉग में अष्टावक्र गीता का एक श्लोक प्रतिदिन मैं पोस्ट कर रहा हूँ। आज अध्याय ९ का निम्न श्लोक पोस्ट करते हुए, मुझे श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय २ का श्लोक ५२ याद आया ।
दोनों श्लोकों का भाव भी समान ही है --
नाना मतं महर्षीणां साधूनां योगिनां तथा।।
दृष्ट्वा निर्वेदमापन्नः को न शाम्यति मानवः।।५।।
इसी आशय से युक्त यह श्लोक भी जान पड़ता है --
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।५२।।
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