साङ्ख्य-निष्ठा और कर्म-निष्ठा
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ज्ञान अर्थात् साङ्ख्य-ज्ञान / साङ्ख्य-योग और कर्म-योग यही दो प्रकार की निष्ठाएँ ही श्रीमद्भगवद्गीता ग्रन्थ का प्रधान विषय है। निम्न श्लोक में इसी को सूत्र-रूप में व्यक्त किया गया है :
श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते।।
ध्यानात्कर्मफलस्त्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्।।१२।।
(अध्याय १२)
यहाँ ज्ञान को साङ्ख्य ज्ञान अथवा बौद्धिक ज्ञान, दोनों के अर्थ में सन्दर्भ के अनुसार ग्रहण किया जा सकता है, किन्तु ध्यान का संकेत यहाँ महर्षि पतञ्जलि-कृत योगशास्त्र के सन्दर्भ में लिया जाना, अधिक सार्थक तथा समीचीन होगा। क्योंकि किसी भी ध्यान के अभ्यास में ध्याता (अर्थात् विषयी / subject), ध्येय (अर्थात् विषय / object) और दोनों के एक-दूसरे से संबंधित होने में, ध्यान ( -विषय और विषयी का संयोग / attention) भी एक कारक (factor) तो होता ही है। इसीलिए पतञ्जलि महर्षि ने इस ग्रन्थ के प्रथम अध्याय (समाधिपाद) के प्रारंभ में ही योग को परिभाषित करते हुए :
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।।
का उल्लेख किया है।
तृतीय अध्याय में :
देशबन्धश्चित्तस्य धारणा ।।१।।
तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्।।२।।
तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः।।३।।
के पश्चात् धारणा, ध्यान तथा समाधि तीनों के एकत्र होने को संयम कहा है :
त्रयमेकत्र संयमः।।४।।
तज्जयात् प्रज्ञालोकः।।५।।
(उपरोक्त सूत्र ५ को श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों 2/54, 2/55, 2/56, 2/57, 2/58, और 2/61 के संदर्भ में ग्रहण किया जाना प्रासंगिक होगा।)
तस्य भूमिषु विनियोगः।।६।।
इस प्रकार की भूमिका के बाद चित्त की वृत्ति पर होनेवाले तीनों प्रकारों के परिणामों - क्रमशः निरोध-परिणाम, समाधि-परिणाम तथा एकाग्रता-परिणाम के चित्त पर होनेवाले प्रभाव को स्पष्ट किया गया है। इन प्रभावों से ही पुनः चित्त के धर्म, लक्षण और अवस्था परिणामों की व्याख्या की गई है :
एतेन भूतेन्द्रियेषु धर्मलक्षणावस्था परिणामा व्याख्याताः।।१३।।
उपरोक्त विवरण यहाँ इस संबंध में महत्वपूर्ण है कि जब भक्ति (रूपी कर्म) के माध्यम से इष्ट के स्वरूप की मानसिक प्रतिमा पर ध्यान एकाग्र किया जाता है उस समय भी चित्त पर (जानते हुए या अनजाने ही) उक्त परिणाम होते हैं।
पातञ्जल योगसूत्र में साधनपाद में कहा गया है :
दृष्टा दृशिमात्रः शुद्धोऽपि प्रत्ययानुपश्यः।।२०।।
इसी दृष्टा का वर्णन समाधिपाद में :
तदा दृष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम् ।।३।।
के द्वारा किया गया है।
सैद्धान्तिक विवेचना की दृष्टि से यह सब उपयोगी है, किन्तु यह फल तो अभ्यास से ही सिद्ध होता है, केवल कठिन और दुरूह शब्दावलि से परिचित होने मात्र से नहीं।
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