Sunday, January 8, 2023

संकल्प और संशय

श्रीमद्भगवद्गीता और पातञ्जल योगदर्शन 

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संकल्प और संशय का उल्लेख श्रीमद्भगवद्गीता ग्रन्थ के निम्न श्लोकों में इस प्रकार से है :

यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते।।

सर्वसङ्कल्पसन्न्यासी योगारूढस्तदोच्यते।।४।।

सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः।।

मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः।।२४।।

शनैः शनैरुपरमेद्बुद्ध्या धृतिगृहीतया।।

आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्।।२५।।

(अध्याय ६)

तथा,

अज्ञस्याश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।।

नायं लोकोक्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।४०।।

योगसन्न्यस्तकर्माणं ज्ञानसंछिन्नसंशयम्।।

आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय।।४१।।

तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः।।

छित्त्वैनं संशयं योगमुत्तिष्ठातिष्ठ भारत।।४२।।

(अध्याय ४)

अर्जुन उवाच :

योऽयं योगस् त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।।

एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम्।।३३।।

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्ददृढम्।।

तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।३४।।

श्री भगवानुवाच :

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।।

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।३५।।

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः।।

वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः।।३६।।

अर्जुन उवाच :

अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः।।

अप्राप्य योगसंसिद्धिं किं गतिः कृष्ण गच्छति।।३७।।

कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नभ्रमिव नश्यति।।

अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि।।३८।।

एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः।।

त्वदन्यःसंशयमस्यास्य छेत्ता  न ह्युपपद्यते।।३९।।

(अध्याय ६)

अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।।

यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः।।५।।

(अध्याय ८),

एतां विभूतियोगं च मम ये वेत्ता तत्त्वतः।।

सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः।।७।।

(अध्याय १०)

तथा, 

मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।।

निवसिष्यसि मय्येव अथ ऊर्ध्वं न संशयः।।८।।

(अध्याय१२)

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पातञ्जल योग सूत्र के अंतर्गत समाधिपाद अध्याय के सन्दर्भ में निम्न सूत्रों पर दृष्टि डालें :

अथ योगानुशासनम्।।१।।

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।।२।।

तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्।।३।।

वृत्तिसारूप्यमितरत्र।।४।।

वृत्तयः पञ्चतय्यः क्लिष्टाक्लिष्टाः।।५।।

प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः।।६।।

प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि।।७।।

विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम्।।८।।

शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः।।९।।

अभावप्रत्यालम्बना वृत्तिर्निद्रा।।१०।।

अनुभूतविषयसम्प्रमोषः स्मृतिः।।११।।

अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः।।१२।।

तत्र स्थितौ यत्नोऽऽभ्यासः।।१३।।

स तु दीर्घकालनैरन्तर्यसेवितो दृढभूमिः।।१४।।

दृष्टानुश्रविकविषयवितृष्णस्य वशीकारसंज्ञा वैराग्यम्।।१५।।

तत्परं पुरुषख्यातेर्गुणवैतृष्ण्यम्।।१६।।

वितर्कविचारानन्दास्मितानुगमात् सम्प्रज्ञातः।।१७।।

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स्मृतिपरिशुद्धौ स्वरूपशून्येवार्थमात्र-निर्भासा निर्वितर्का।।४३।।

एतयोरेकं सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्मविषया व्याख्याता।।४४।।

उपरोक्त सूत्रों में सूत्र ६ के अनुसार चित्त-दशा अर्थात् - state of mind को ही वृत्ति कहा जा सकता है : प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः।।६।।

इस दृष्टि से प्रमाण प्रत्यक्ष इन्द्रियसंवेदन या इन्द्रियगम्य ज्ञान है। 

इस आधार पर किया जानेवाला अनुमान भी प्रमाण ही है और इस सम्पूर्ण ज्ञान का संग्रह आगम है।

विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम् ।।८।।

संशयवृत्ति का, तथा 

शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः।।९।।

संकल्पवृत्ति का द्योतक है।

संशय में ज्ञान किस वस्तु का है, उस वस्तु का स्वरूप स्पष्ट नहीं है -- अर्थात् ऐसा ज्ञान जिसका आधार ही शंकास्पद है। 

संकल्प में जिस वस्तु के बारे में कल्पना की जा रही है, उसकी  कल्पना उस वस्तु के अभाव की स्थिति में कल्पित भाव-मात्र होता है। जैसे सुख या दुःख ...

जैसे 6/4, 6/24, 6/25 में संकल्प पद का प्रयोग है। 

6/39, 8/5, 7/10, और 12/8 श्लोकों में संशय पद का प्रयोग दृष्टव्य है।

श्लोक 35/6 में समाधिपाद सूत्र १२ का उल्लेख सन्दर्भ के रूप में देखा जा सकता है। 

सूत्र १७ 

वितर्क-विचार-आनन्द-अस्मिता-अनुगमात् सम्प्रज्ञातः।।१७।।

में अस्मिता भी वितर्क, विचार, आनन्द की तरह की वृत्ति ही है, ऐसा कहा जा सकता है। क्योंकि बाद में सूत्र ४३

स्मृतिपरिशुद्धौ स्वरूपशून्येवार्थमात्र-निर्भासा।।४३।।

तथा

एतयैव सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्म विषया व्याख्याता।।४४।।

में यह स्पष्ट किया गया है।

मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।।

निवसिष्यसि मय्येव अथ ऊर्ध्वं न संशयः।।८।।

-अध्याय १२  --(12/8)

तथा, 

अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।।

यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः।।५।।

(अध्याय ८)

में अस्मिता अर्थात् अहं-वृत्ति भी वृत्ति ही है। 

शायद इसे संशोधित किया जाना चाहिए। 

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