Monday, January 16, 2023

प्रवृत्ति और निवृत्ति

प्रवृत्ति की प्रेरणा 

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इससे पहले का पोस्ट लिखते समय प्रवृत्ति और निवृत्ति के बारे में लिखने का मन था, किन्तु एकाएक विषय-वस्तु के आधार पर व्यवसायात्मिका बुध्दि के सन्दर्भ में लिख दिया!

11/15,

अर्जुन उवाच :

पश्यामि देवांस्तव देव देहे

सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान्।।

ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ-

मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्।।१५।।

...

... ।।३०।।

11/31

आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो

नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद।।

विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं

न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्।।३१।।

कालोऽस्मि लोकक्षयकृतप्रवृद्धो

लोकान् समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।।

ऋतेऽपि त्वा न भविष्यन्ति सर्वे

येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।३२।।

(अध्याय ११)

14/12

लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा।।

रजस्येतानि जायन्ते विवृधे भरतर्षभ।।१२।।

प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।।

न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति।।२२।।

(अध्याय १४)

15/1

श्रीभगवानुवाच --

ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।।

...।।१।।

15/4

ततः पदं तत्परिमार्गितव्यं यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।।

तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी।।४।।

(अध्याय १५)

16/7

प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।। 

न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते।।७।।

(अध्याय १६)

18/30

प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये।।

प्रोच्यमानशेषेण पृथक्त्वेन धनञ्जय।।३०।।

18/46

यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।।

स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।४६।।

(अध्याय १८)

उपरोक्त श्लोकों में 16/7 का प्रमुख महत्व है ।

यह उन लोगों के बारे में है, जिन्हें न तो यह पता है कि प्रवृत्ति क्या है और न यह कि निवृत्ति क्या है। वे केवल अपने संस्कारों से परिचालित होकर लोभ और भय, आशा और निराशा, इच्छा, राग, ईर्ष्या, द्वेष, अभिमान, गर्व और दैन्य सहित यंत्रवत जीवन व्यतीत किया करते हैं। इसे ही आसुरी संपत्ति कहा गया है। जैसे दैवी संपत्ति से युक्त मनुष्य सर्वत्र पाए जाते हैं, उसी तरह आसुरी संपत्ति से युक्त मनुष्य भी सर्वत्र पाए जाते हैं। 

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