~~~~~~~ ॥ गीता में कवि ॥ ~~~~~
_________________________________
*********************************
मैं नहीं सोचता कि कविता कालजयी होती होगी ।
_________________________________
*********************************
मैं नहीं सोचता कि कविता कालजयी होती होगी ।
कविता में ऐसी कल्पना शायद कविता को अधिक
सार्थकता देती होगी, बस उतने में संतुष्ट होना काफ़ी
है ।
इस बारे में गीता के विचार जानने की उत्सुकता हुई,
और देखा तो पढ़ा -
किं कर्म किम् अकर्म-इति कवयो-अपि अत्र मोहिताः ।
तत् ते कर्म प्रवक्ष्यामि यत् ज्नात्वा मोक्ष्यसे अशुभात् ॥
-अ४श्लोक१६
आद्य शंकराचार्य ने यहाँ कवि का अर्थ मेधावी किया है ।
काम्यानाम् कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदु:।
----- अ१८श्लोक२
यहाँ कवि का अर्थ पन्डित किया है ।
कविं पुराणम् अनुशासितारम् अणोः अणीयान् समनुस्मरेत् यः ।
------अ८श्लोक९
यहाँ कवि का अर्थ क्रान्तदर्शी तथा सर्वज्ञ किया है ।
और अंत में-
वृष्णीनाम् वासुदेवो-अस्मि ---------- ।
मुनीनाम्---------------- कवीनां उशना कविः ॥
-----अ१०श्लोक३७
कुछ नया लिखने की दृष्टि से मैंने यह प्रयास किया है ।
चूँकि अपर्णाजी ने टैग किया इसलिए साहस कर रहा हूँ।
____________________________________
************************************
(*मूलत: फेसबुक की एक मित्र सुश्री अपर्णा मनोज
के द्वारा कविता के संबंध में अपने विचार व्यक्त
करने के लिए किये गए अनुरोध के प्रत्युत्तर में व्यक्त
मेरे विचार.)
____________________________________
************************************
(*मूलत: फेसबुक की एक मित्र सुश्री अपर्णा मनोज
के द्वारा कविता के संबंध में अपने विचार व्यक्त
करने के लिए किये गए अनुरोध के प्रत्युत्तर में व्यक्त
मेरे विचार.)