Saturday, February 20, 2010

ईश्वर -1

~~~~~~~ ईश्वर-1~~~~~~~
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(यदि आपको रूचि हो, तो
इस पोस्ट को पढ़ने से पहले 'हिंदी-का-ब्लॉग' के अंतर्गत लिखी गयी 'उन दिनों' के पोस्ट्स क्रमांक 53, 54 एवं 55 देखेंवहाँ इस सन्दर्भ में संभवत: अधिक विस्तृत और उपयोगी जानकारी पाई जा सकती है कृपया वहाँ देखें इसके लिए आपको मेरी पूरी प्रोफाइल देखना होगी, और 'मेरे ब्लॉग' के अंतर्गत 'हिंदी-का-ब्लॉग ' ब्लॉग पर क्लिक करना होगा आपको )
गीता में 'ईश्वर' शब्द का प्रयोग निम्न स्थानों पर दृष्टव्य है :
अध्याय , श्लोक ,
"अजोSपिसन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोSपिसं- ।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया ॥ "
अध्याय १३, श्लोक २२,
उपदृष्टानुमन्ता भर्त्ता भोक्ता महेश्वर: ।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेSस्मिन्पुरुष: पर: ॥ "
अध्याय १३, श्लोक २८,
"समं पश्यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरं ।
न हिनस्ति-आत्मना-आत्मानम् ततो याति परां गतिम् ॥ "
अध्याय १५, श्लोक , एवं १७,
"शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वर: ।
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गंधानिवाशयात ॥ " --()
तथा,
"उत्तम: पुरुषस्त्वन्य: परमात्मेत्युदाहृत: ।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वर: ॥ " --(१७)
अध्याय १६, श्लोक १४,
"असौ मया हत: शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि
ईश्वरोSहमहं भोगी सिद्धोSहं बलवान्सुखी ॥ "
अध्याय १८, श्लोक ४३, एवं ६१,
"शौर्यं तेजो धृतिर्द्राक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनं
दानमीश्वरभावश्च क्षत्रकर्म स्वभावजं ॥ " --(४३)
तथा,
"ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेSर्जुन तिष्ठति
भ्रामयन्सर्वभूतानि यंत्रारूढानि मायया ॥ --(६१)
उपरोक्त श्लोकों में 'ईश्वर' शब्द का क्या अभिप्राय हो सकता है, इस पर अगली बार
(उपरोक्त श्लोकों की टाइप-सेटिंग में कुछ त्रुटियाँ थीं, जिन्हें आज 25-02-2010 के दिन सुधार दिया है .)
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