आज का श्लोक / - 'हेतुः' / 'hetuH'
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कार्यकरणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते ।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते ॥
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(कार्य-करण-कर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिः उच्यते ।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुः उच्यते ॥)
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कार्य (घटना / फल) करण (माध्यम, साधन, सहायक यंत्र) का आधार / अधिष्ठान प्रकृति को कहा गया है,
जबकि पुरुष को सुख एवं दुःख आदि के भोग का अधिष्ठान कहा गया है ।
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'हेतुः' / 'hetuH'
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kArya-karaNa-kartRtve hetuH prakRtiruchyate |
puruShaH sukhaduHkhAnAM bhoktRutve heturuchyate ||
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karya > Cause and Effect, karaNa > instrument, hetuH > motivation and purpose., basis and goal. objective and object, prakRtiruchyate > prakrutiH + uchyate > The manifestation is said to be.
puruShaH > The self / Self, soul, sukha-duHkhAnAM bhoktRtve > of experiencing the pleasures and pains.
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कार्यकरणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते ।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते ॥
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(कार्य-करण-कर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिः उच्यते ।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुः उच्यते ॥)
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कार्य (घटना / फल) करण (माध्यम, साधन, सहायक यंत्र) का आधार / अधिष्ठान प्रकृति को कहा गया है,
जबकि पुरुष को सुख एवं दुःख आदि के भोग का अधिष्ठान कहा गया है ।
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'हेतुः' / 'hetuH'
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kArya-karaNa-kartRtve hetuH prakRtiruchyate |
puruShaH sukhaduHkhAnAM bhoktRutve heturuchyate ||
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karya > Cause and Effect, karaNa > instrument, hetuH > motivation and purpose., basis and goal. objective and object, prakRtiruchyate > prakrutiH + uchyate > The manifestation is said to be.
puruShaH > The self / Self, soul, sukha-duHkhAnAM bhoktRtve > of experiencing the pleasures and pains.
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prakRti ( The power ofmanifestation) is said to be responsible for cause and effect and also for the notion of 'doer-ship', puruSha the only support that makes possible the experiences of pleasure and pain.
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