Friday, January 31, 2014

आज का श्लोक / 'हिमालयः'/ 'himAlayaH'

आज का श्लोक / 'हिमालयः'/ 'himAlayaH'
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अध्याय 10, श्लोक २५,
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महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरं ।
यज्ञानां जपयज्ञोsस्मि  स्थावराणां हिमालयः
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हिमालयः - हिमालय पर्वत।
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भावार्थ :
महर्षियों में मैं महर्षि भृगु, वाणी के रूपों में मैं पदात्मक वाक्यों में एक अक्षर ओंकार, यज्ञों में जपयज्ञ तथा स्थावर अर्थात्  अचल तत्वों में पर्वतराज हिमालय हूँ।
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Chapter 10, shloka 25.
'हिमालयः'/ 'himAlayaH' > Himalayas Mountains.
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maharShINAM   bhRgurahaM
girAmasmyekamakSharaM |
yajnAnAM japayajno'smi
sthAvarANAM himAlayaH ||
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Among Sages, I am bhRugu maharShi, among words, I am the monosyllable "OM", Of sacrifices, I am the sacred chanting, and of the unmoving, I am the Himalayas.
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