Friday, January 31, 2014

आज का श्लोक / 'हित्वा' / 'hitvA'

आज का श्लोक / 'हित्वा' / 'hitvA' 
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अध्याय 2, श्लोक 33,
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अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि ।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥
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( अथ चेत् त्वं इमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि ।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापं अवाप्स्यसि ॥)
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हित्वा, 'हा' / 'हन्' अर्थात् हनन करना,  'ल्यप् ' प्रत्यय सहित , 'हित्वा'= मारकर।
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भावार्थ :
अतः (हे अर्जुन!) यदि तू इस धर्मसम्मत संग्राम को नहीं करेगा तो अपने धर्म और कीर्ति की भी हानि कर पाप का भागी होगा।
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'हित्वा' / 'hitvA
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Chapter 2, shloka 33,
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atha chettvamimaM dharmyaM
saMgrAmaM na kariShyasi |
tataH svadharmaM kIrtiM cha
hitvA pApamavApsyasi ||
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Meaning : causing harm to, endangering.
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Arjuna !If you say you will not take part in this righteous war, you will lose not only the reputation and status on the worldly level, but also incur sin.
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