आज का श्लोक / 'हृष्यामि' / 'hRShyAmi'
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अध्याय 18 , श्लोक 76 , 77
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राजनसंस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम् ।
केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः ॥
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तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः ।
विस्मयो मे महान्-राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः ॥
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हृष्यामि > हर्षित होता हूँ ।
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Chapter 18, shloka 76, 77.
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rAjansansmRtya sansmRtya
saMvAdamimamadbhutaM |
keshavArjunayoH ouNyaM
hRShyAmi cha muhurmuhuH ||
tachcha sansmRtya sansmRtya
rUpamatyadbhutaM hareH |
vismayo me mahAnrAjan-
hRShyAmi cha punaH punaH ||
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अध्याय 18 , श्लोक 76 , 77
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राजनसंस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम् ।
केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः ॥
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तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः ।
विस्मयो मे महान्-राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः ॥
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हृष्यामि > हर्षित होता हूँ ।
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Chapter 18, shloka 76, 77.
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rAjansansmRtya sansmRtya
saMvAdamimamadbhutaM |
keshavArjunayoH ouNyaM
hRShyAmi cha muhurmuhuH ||
tachcha sansmRtya sansmRtya
rUpamatyadbhutaM hareH |
vismayo me mahAnrAjan-
hRShyAmi cha punaH punaH ||
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