Thursday, January 30, 2014

आज का श्लोक / ’हिंसाम्’ / 'hinsAm'

आज का श्लोक  / ’हिंसाम्’ / 'hinsAm'
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अध्याय 18, श्लोक 25,
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अनुबन्धं क्षयं हिंसामनपेक्ष्य च पौरुषं ।
मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते ॥
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(अनुबन्धं क्षयं हिंसाम् अनपेक्ष्य च पौरुषम् ।
मोहात् आरभ्यते कर्म यत् तत् तामसम् उच्यते ॥)
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अनुबन्ध - कर्म के अन्त में प्राप्त होनेवाला परिणाम, क्षय - शक्ति या धन की हानि, हिंसा - प्राणियों को होनेवाली पीड़ा, तथा पौरुष - अपने सामर्थ्य / क्षमता के बारे में सोचे विचारे बिना जो कर्म प्रारंभ किया जाता है उसको तामस् कर्म कहा जाता है ।
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Chapter 18, shloka 25,
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’हिंसाम्’/ 'hinsAM' - pain caused to creatures.

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anubandhaM kShayaM hinsAm-
anapekShya cha pauruShaM |
mohAdArabhyate karma
yattattAmasamuchyate ||
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Meaning :
Actions that begin in doubt, delusion / confusion, without understanding and thinking of the ultimate possible result, loss / wastage of resources,  causing harm and pain to creatures and one's own capacity, are termed 'tAmasa'.
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