Friday, May 16, 2014

आज का श्लोक, ’संभवः’ / ’saṃbhavaḥ’,

आज का श्लोक,  ’संभवः’ / ’saṃbhavaḥ’,
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’संभवः’ / ’saṃbhavaḥ’ - उत्पत्ति,

अध्याय 14, श्लोक 3,

मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम् ।
सम्भवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत ॥
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(मम योनिः महत्-ब्रह्म तस्मिन् गर्भम् दधामि अहम् ।
सम्भवः सर्वभूतानाम् ततो भवति भारतः ॥)
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भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन)! महत्-ब्रह्म-रूपी प्रकृति मेरी योनि है, जिसमें मेरे द्वारा चेतन-समुदायरूपी गर्भ को धारण किया जाता है, और उससे ही सब भूतों की उत्पत्ति होती है ।
टिप्पणी :
यहाँ पर मैंने अनुवाद की शैली से भावार्थ को मूल तात्पर्य के तारतम्य में रखने का प्रयास किया है । ’दधामि’ ’धा’, ’जुहोत्यादिगण’ की उभयपदी धातु का ’लट्’-लकार, उत्तम पुरुष एकवचन है, स्पष्ट है कि यहाँ श्लोक में धातु का परस्मैपदी प्रयोग है । आत्मनेपदी में रूप ’दधे’ हो जाता है ।एक कौतूहल उठना स्वाभाविक है । क्या परमात्मा नारी है? या पुरुष है? संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यहाँ ’अहम्’ शब्द के सन्दर्भ में ’दधामि’ का अवलोकन करें तो परमात्मा के नारी या पुरुष होने का प्रश्न ही नहीं उठता । किन्तु ’गर्भ’ शब्द के प्रयोग से यह प्रश्न कौतूहल के रूप में मेरे मन में उठा । हिन्दी में उत्तम-पुरुष एकवचन (मैं) उभयलिंगी है, स्त्री अथवा पुरुष दोनों सर्वनाम के लिए ’अहम्’ की भाँति प्रयुक्त होता है । किन्तु इस ’मैं’ के साथ लगनेवाला वर्तमान-काल में प्रयोग किया जानेवाला क्रिया-रूप  संस्कृत में तो एक जैसा रहता है, किन्तु हिन्दी में स्त्री-वाची और पुरुष-वाची संज्ञा ’मैं’ के साथ भिन्न-भिन्न होता है । ’अहम् गच्छामि’ का प्रयोग पुरुष या स्त्री दोनों कर सकते हैं, किन्तु ’मैं जाता हूँ’ सिर्फ़ पुरुष ही कह सकता है, और इसी तरह ’मैं जाती हूँ’ सिर्फ़ स्त्री ही कह सकती है । इसलिए इस श्लोक के संस्कृत में प्रस्तुत रूप में यह प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता, जो इसका अनुवाद करते समय अनुवादक के समक्ष उत्पन्न हुआ । इसलिये अनुवादक (मैं) ने यही उचित समझा कि वाक्य-रचना ही इस प्रकार  से की जाए जिससे यह प्रश्न पैदा ही न हो । जैसे अंग्रेज़ी में 'I go' का प्रयोग स्त्री या पुरुष  दोनों ही समान रूप से कर सकते हैं !  
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’संभवः’ / ’saṃbhavaḥ’ - Creation,  Manifestation, Coming into being,

Chapter 14, shloka 3,

mama yonirmahadbrahma
tasmingarbhaṃ dadhāmyaham |
sambhavaḥ sarvabhūtānāṃ
tato bhavati bhārata ||
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(mama yoniḥ mahat-brahma
tasmin garbham dadhāmi aham |
sambhavaḥ sarvabhūtānām
tato bhavati bhārataḥ ||)
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Meaning :
O  bhārata, (arjuna)! mahat-brahma / prakṛti is My Cosmic womb, The yoniḥ, The Cause Primal / The Origin, wherein I hold the seed of the existence. From That seed comes into existence, This all / Whole life .
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