Friday, May 16, 2014

आज का श्लोक, ’संभवन्ति’ / ’saṃbhavanti’,

आज का श्लोक,  ’संभवन्ति’ /  ’saṃbhavanti’,  
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’संभवन्ति’ /  ’saṃbhavanti’ - उत्पन्न होते हैं,

अध्याय 14, श्लोक 4, 
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ॥
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(सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।
तासाम् ब्रह्म महत् योनिः अहम् बीजप्रदः पिता ॥)
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भावार्थ :
हे कौन्तेय (कुन्तीपुत्र अर्जुन)! समस्त योनियों में जितनी भी मूर्तियाँ (अनेक रूपाकृतियाँ) उत्पन्न होती हैं, उन सबकी महत् योनि, सबका आदिकारण प्रकृति अर्थात् महत्-ब्रह्म ही है (जैसा कि पिछले श्लोक में कहा गया था), जिसे मैं ही बीज प्रदान करता हूँ और इस प्रकार से मैं ही उनका पिता हूँ ।
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’संभवन्ति’ /  ’saṃbhavanti’ - Are manifest, come into being,
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Chapter 14, shloka 4,

sarvayoniṣu kaunteya
mūrtayaḥ sambhavanti yāḥ |
tāsāṃ brahma mahadyoni-
rahaṃ bījapradaḥ pitā ||
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(sarvayoniṣu kaunteya
mūrtayaḥ sambhavanti yāḥ |
tāsām brahma mahat yoniḥ
aham bījapradaḥ pitā ||)
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Meaning :
This prakṛti / mahat-brahma is the mahat yoniḥ -Great mother, that conceives the seed of All the beings that are born in innumerable different body-forms. And I AM The Father, That provides the seed.
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