Saturday, May 24, 2014

आज का श्लोक, ’संन्यासेन’ / ’saṃnyāsena’,

आज का श्लोक,  ’संन्यासेन’ / ’saṃnyāsena’,
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’संन्यासेन’ / ’saṃnyāsena’ - साँख्ययोग के (आचरण के ) माध्यम से,
 
अध्याय 18, श्लोक 49,

असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः ।
नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां सन्न्यासेनाधिगच्छति ॥
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(असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः ।
नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां सन्न्यासेनाधिगच्छति ॥)
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भावार्थ :
आसक्ति-बुद्धि से सर्वत्र और सर्वथा रहित, मन-बुद्धि तथा इन्द्रियों को वश में रखनेवाला, स्पृहारहित ऐसा मनुष्य साँख्ययोग के व्यवहार से परम नैष्कर्म्य-सिद्धि को प्राप्त होता है ।
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टिप्पणी :
नैष्कर्म्य सिद्धि का अर्थ है मन, बुद्धि, शरीर, परिस्थितियों, काल और स्थान आदि के द्वारा घटित होनेवाले कर्मों  को अपने द्वारा किए जाने के (भ्रमवश पैदा हुए) विचार से छुटकारा हो जाना । यह तभी संभव होता है जब कोई देख लेता है कि समस्त कर्मों का अनुष्ठान ( हो पाना, पूर्ण किया जाना) प्रकृति के द्वारा और उसके ही 3 गुणों के माध्यम से संपन्न होता है, तथा मैं (उनके होने / न होने का जिसे पता चलता है किन्तु जो स्वयं न तो उन कर्मों को करता है और न ही उनसे किसी भी भाँति प्रभावित होता है, वह चेतना, बोध, साक्षी तत्व अर्थात् आत्मा) सदा ही, नितान्त अकर्ता हूँ । घटनाओं / कर्मों के तत्व को उनमें निहित उनकी अनित्यता के लक्षण से, तथा साक्षी चेतना को उसमें निहित उसकी नित्यता के लक्षण से पहचाना जाता है । इस प्रकार हम नित्यता तथा अनित्यता के तत्व को, और अनायास ही काल के उन दो प्रकारों को भी समझ लेते हैं जिनमें से एक घटनाओं के रूप में व्यतीत होता जान पड़ता है, जबकि दूसरा अचल है ।
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’संन्यासेन’ / ’saṃnyāsena’  - By means of the right understanding and practice of ’sāṃkhyayoga’.

Chapter 18, shloka 49,
asaktabuddhiḥ sarvatra
jitātmā vigataspṛhaḥ |
naiṣkarmyasiddhiṃ paramāṃ
sannyāsenādhigacchati ||
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(asaktabuddhiḥ sarvatra
jitātmā vigataspṛhaḥ |
naiṣkarmyasiddhiṃ paramāṃ
sannyāsenādhigacchati ||)
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Meaning :
With no attachment nor craving for anything, a man with control over his body, senses and mind, by means of the right understanding and practice of ’sāṃkhyayoga’, attains the great state of freedom from all action (naiṣkarmyasiddhiḥ)  
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Note :
naiṣkarmyasiddhiḥ means,
Getting rid of the false idea (illusion), the primal-ignorance:
 '' I do various actions, and enjoy / suffer / experience the consequences their-of."
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