Wednesday, May 7, 2014

आज का श्लोक, ’संशयात्मनः’ / ’saṃśayātmanaḥ’,

आज का श्लोक, ’संशयात्मनः’ / ’saṃśayātmanaḥ’, 
_____________________________________

’संशयात्मनः’ / ’saṃśayātmanaḥ’ - संदेह और अनिश्चयपूर्ण बुद्धिवाला ।

अध्याय 4, श्लोक 40,

अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति ।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः
--
(अज्ञः च अश्रद्दधानः च संशयात्मा विनश्यति ।
न-अयम् लोको अस्ति न परः न सुखम् संशयात्मनः ॥)
--
भावार्थ :
(विवेकजन्य) ज्ञान तथा श्रद्धा से रहित, संशययुक्त चित्त वाला मनुष्य विनष्ट हो जाता है, क्योंकि न तो यह लोक और न परलोक, और इसलिए न सुख ही, उसका होता है ।
--

’संशयात्मनः’ / ’saṃśayātmanaḥ’ - One whose mind is assailed by doubts and confusion.

Chapter 4, shloka 40,

ajñaścāśraddadhānaśca
saṃśayātmā vinaśyati |
nāyaṃ loko:'sti na paro
na sukhaṃ saṃśayātmanaḥ ||
--
(ajñaḥ ca aśraddadhānaḥ ca
saṃśayātmā vinaśyati |
na-ayam loko asti na paraḥ
na sukham saṃśayātmanaḥ ||)
--
Meaning :
One who has no wisdom, is ignorant of the Truth, one who lacks trust, and even more, is doubtful about the way of wisdom is just destroyed. For such a man, there is neither this world, nor the world here-after. There is no hope nor happiness for him.
--

No comments:

Post a Comment