Sunday, May 11, 2014

आज का श्लोक, ’ संयमाग्निषु ’ / ’saṃyamāgniṣu’,

आज का श्लोक,  ’संयमाग्निषु’ /  ’saṃyamāgniṣu’,
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’संयमाग्निषु’ /  ’saṃyamāgniṣu’

अध्याय 4, श्लोक 26,
श्रोत्रादीनिन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति ।
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति ॥
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(श्रोत्रादीनि-इन्द्रियाणि-अन्ये संयमाग्निषु जुह्वति ।
शब्द-आदीन्-विषयान्-अन्ये इन्द्रियाग्निषु जुह्वति ॥)
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भावार्थ :
यज्ञ और हवन का व्यापक अर्थ प्रस्तुत अध्याय 4 के श्लोक 24  में कहा गया है । और श्लोक 32, 33 में भी यज्ञ के तात्पर्य और महिमा का संक्षेप में पुनः वर्णन है । यज्ञ के ही दो रूप ये हैं जिसमें कुछ तो श्रोत्र आदि इन्द्रियों का हवन संयम रूपी अग्नि में  करते हैं, जिसका तात्पर्य है इन्द्रियों को भोग की प्रवृत्ति से हटाकर त्याग की दिशा में प्रवृत्त रखना । जबकि कुछ दूसरे इसी प्रकार, शब्द, स्पर्श आदि पञ्च-तन्मात्राओं का हवन इन्द्रिय-रूपी अग्नि में करते हैं, जिसका तात्पर्य है इन्द्रियों को उन विषयों में न जाने देकर उन विषयों को ही इन्द्रियों में लीन कर देना ।
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टिप्पणी :
’हु’ जुहोत्यादि गण की धातु है, जिसका प्रयोग ’यज्ञ’ करने के अर्थ में किया जाता है ।
लट्-लकार (वर्तमान-काल) प्रथम पुरुष के तीन रूप (एकवचन, द्विवचन, बहुवचन) क्रमशः 'जुहोति' 'जुहुतः' 'जुह्वति', होते हैं । ’ल्युट्’ प्रत्यय के साथ प्रयुक्त होने पर ’हु’ का संज्ञा तथा क्रिया रूप ’हवनम्’ बनता है ।

’संयमाग्निषु’ /  ’saṃyamāgniṣu’ - homage into the sacrificial fire of the form of  'restraint'.

Chapter 4, shloka 26,

śrotrādīnindriyāṇyanye
saṃyamāgniṣu juhvati |
śabdādīnviṣayānanya
indriyāgniṣu juhvati ||
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(śrotrādīni-indriyāṇi-anye
saṃyamāgniṣu juhvati |
śabda-ādīn-viṣayān-anye
indriyāgniṣu juhvati ||)
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Meaning :
The form nature, deeper meaning and significance of  yajña havana has been elaborated in the śloka 24 onward of this Chapter.
Few perform this yajña / havana  through the sacrifice of sense-organs into the fire of restraint, while others through the sacrifice of the 5 kinds of sensory-perceptions tanmātrā into the fire of senses.
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Notes :
1. We can see in  the saṃskṛta word homa, the origin of the word 'homage'. Because the meaning of homa, and 'homage' are in perfect agreement.
2. The Sacrifice of sense-organs into the fire of restraint means purifying them and improving the quality of their tendencies.
3. The Sacrifice of the 5 kinds of sensory perceptions indicates, we let the noble purified thoughts, and perceptions come into our consciousness. It is important to note that during a yajña / havana  only pure / purified objects ( purified / refined butter) are offered to agni /  The Fire God. In simple words, these are the meditation-techniques that help one grow and develop the understanding of the more subtle spiritual truths of gītā.
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