Tuesday, May 13, 2014

आज का श्लोक, ’संभावितस्य’ / ’saṃbhāvitasya’,

आज का श्लोक,  ’संभावितस्य’ /  ’saṃbhāvitasya’,
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’संभावितस्य’ /  ’saṃbhāvitasya’, - स्वाभिमानी मनुष्य के लिए,

अध्याय 2, श्लोक 34,

अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् ।
सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते ॥
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(अकीर्तिम् च अपि भूतानि कथयिष्यन्ति ते अव्ययाम् ।
सम्भावितस्य च अकीर्तिः मरणात् अतिरिच्यते ॥)
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भावार्थ : ( श्लोक 33, अब यदि तुम यह धर्म से निर्दिष्ट हुए संग्राम के लिए ’नहीं करूँगा’ ऐसा कहते हो तो, तुम अपने स्वधर्म तथा कीर्ति दोनों को खोकर पाप को प्राप्त होगे ।... के क्रम में)
और सब लोग बहुत काल तक रहनेवाली तुम्हारी इस अपकीर्ति का भी कथन करेंगे, और स्वाभिमानी पुरुष के लिए अपकीर्ति तो निश्चय ही मृत्यु से भी अधिक दुःखदायी है ।  

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’संभावितस्य’ /  ’saṃbhāvitasya’, - Of a man with the sense of self-respect / dignity.
 
Chapter 2, shloka 34,

akīrtiṃ cāpi bhūtāni
kathayiṣyanti te:'vyayām |
sambhāvitasya cākīrtir-
maraṇādatiricyate ||
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(akīrtim ca api bhūtāni
kathayiṣyanti te avyayām |
sambhāvitasya ca akīrtiḥ
maraṇāt atiricyate ||)
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Meaning :
( This one is in the continuation of the shloka 33, of this Chapter 2, where arjun has been told by śrīkṛṣṇa :
If you say 'I shall not fight this war' you shall incur sin and lose reputation. Because of running away from the war that is obligatory upon you and is ordained by the dharma. ...)
And people here-after will always keep on talking low of  you, and for a man of honor, defamation is far worse than even the death.
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