आज का श्लोक, ’संस्तभ्य’ / ’saṃstabhya’,
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’संस्तभ्य’ / ’saṃstabhya’ - दृढतापूर्वक ठहराकर,
अध्याय 3, श्लोक 43,
एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना ।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥
--
(एवम् बुद्धेः परम् बुद्ध्वा संस्तभ्य आत्मानम् आत्मना ।
जहि शत्रुम् महाबाहो कामरूपम् दुरासदम् ॥)
--
भावार्थ :
(जैसा पिछले श्लोक में कहा गया है, ’वह तत्व जो बुद्धि से भी परे है, आत्मतत्व है,’ इसलिए,) हे महाबाहु अर्जुन! बुद्धि से परे के उस तत्व को ठीक से निश्चयपूर्वक जान-समझकर, आत्मा (शुद्ध और सूक्ष्म बुद्धि) को ही आत्मा में दृढता से सुस्थिर रखते हुए, कामनारूपी दुष्ट कुटिल शत्रु को मार डालो ।
--
’संस्तभ्य’ / ’saṃstabhya’ - staying firmly,
Chapter 3, shloka 43,
evaṃ buddheḥ paraṃ buddhvā
saṃstabhyātmānamātmanā |
jahi śatruṃ mahābāho
kāmarūpaṃ durāsadam ||
--
(evam buddheḥ param buddhvā
saṃstabhya ātmānam ātmanā |
jahi śatrum mahābāho
kāmarūpam durāsadam ||)
--
Meaning :
(as is said in the earlier shloka, 'what is beyond intellect, is The Self', ...)
By means of fixing the attention steady in The Self, staying firmly in Self, Know for certain The Self (Intelligence) that is beyond intellect, and in this manner kill the formidable enemy, the desire, O arjuna!
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’संस्तभ्य’ / ’saṃstabhya’ - दृढतापूर्वक ठहराकर,
अध्याय 3, श्लोक 43,
एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना ।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥
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(एवम् बुद्धेः परम् बुद्ध्वा संस्तभ्य आत्मानम् आत्मना ।
जहि शत्रुम् महाबाहो कामरूपम् दुरासदम् ॥)
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भावार्थ :
(जैसा पिछले श्लोक में कहा गया है, ’वह तत्व जो बुद्धि से भी परे है, आत्मतत्व है,’ इसलिए,) हे महाबाहु अर्जुन! बुद्धि से परे के उस तत्व को ठीक से निश्चयपूर्वक जान-समझकर, आत्मा (शुद्ध और सूक्ष्म बुद्धि) को ही आत्मा में दृढता से सुस्थिर रखते हुए, कामनारूपी दुष्ट कुटिल शत्रु को मार डालो ।
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’संस्तभ्य’ / ’saṃstabhya’ - staying firmly,
Chapter 3, shloka 43,
evaṃ buddheḥ paraṃ buddhvā
saṃstabhyātmānamātmanā |
jahi śatruṃ mahābāho
kāmarūpaṃ durāsadam ||
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(evam buddheḥ param buddhvā
saṃstabhya ātmānam ātmanā |
jahi śatrum mahābāho
kāmarūpam durāsadam ||)
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Meaning :
(as is said in the earlier shloka, 'what is beyond intellect, is The Self', ...)
By means of fixing the attention steady in The Self, staying firmly in Self, Know for certain The Self (Intelligence) that is beyond intellect, and in this manner kill the formidable enemy, the desire, O arjuna!
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