Sunday, May 25, 2014

आज का श्लोक, ’संन्यासी’ / ’saṃnyāsī’,

आज का श्लोक,  ’संन्यासी’ / ’saṃnyāsī’,   
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’संन्यासी’ / ’saṃnyāsī’ - सांख्य के तत्व को जाननेवाला,
 
अध्याय 6, श्लोक 1,

श्रीभगवानुवाच :

अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।
सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥
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(अनाश्रितः कर्मफलम् कार्यम् कर्म करोति यः ।
सः सन्न्यासी च योगी च न निरग्निः न च अक्रियः ॥)
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भावार्थ :
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं  - वह नहीं, जो कि  हठपूर्वक अग्नि को नहीं छूता, या दूसरे सारे कर्मों को त्याग देता है, बल्कि वह पुरुष जो कि कर्म के फल पर आश्रित नहीं होता, अर्थात् फल अनुकूल या प्रतिकूल क्या होता है इस विषय में जिसका कोई आग्रह नहीं होता, और जो अपने लिए निर्धारित कर्तव्य को पूर्ण करने के ध्येय से किसी कर्म में संलग्न होता है, वास्तविक अर्थों में संन्यासी (जिसने कर्म को त्याग दिया है) और वही कर्मयोगी अर्थात् कर्म करते हुए भी उसे मोक्ष का साधन बना लेनेवाला कुशल योगी होता है ।
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’संन्यासी’ / ’saṃnyāsī’  - One who truly understands and follows the essence of 'sāṃkhya'.

Chapter 6, shloka 1,

śrībhagavānuvāca :

anāśritaḥ karmaphalaṃ
kāryaṃ karma karoti yaḥ |
sa sannyāsī ca yogī ca
na niragnirna cākriyaḥ ||
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(anāśritaḥ karmaphalam
kāryam karma karoti yaḥ |
saḥ sannyāsī ca yogī ca
na niragniḥ na ca akriyaḥ ||)
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Meaning :
bhagavān (Lord) śrīkṛṣṇa said -
Neither the one who has taken a vow of touching not the fire (that means begging for the food and not cook oneself, a condition a traditional saṃnyāsī is expected to observe), nor one who abstains from all other such works in order to live as one, but he, who without thinking of and depending upon the result of actions, performs his duties is  a true yogī  or  saṃnyāsī .  
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Note : saṃnyāsī  / sannyāsī, and संन्यासी / सन्न्यासी are equivalent.
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