आज का श्लोक,
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अध्याय 17, श्लोक 22,
अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते ।
असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम् ।
--
(अदेशकाले यत् दानम् अपात्रेभ्यः च दीयते ।
असत्कृतम् अवज्ञातम् तत् तामसम् उदाहृतम् ॥)
--
भावार्थ :
जो दान बिना समुचित सम्मान (सत्कार) किए, या अवहेलनापूर्वक, अनुचित स्थान-काल में या अपात्र के लिए दिया जाता है, उस दान को तामस प्रकार का कहा जाता है ।
--
Chapter 17, śloka 22,
adeśakāle yaddāna-
mapātrebhyaśca dīyate |
asatkṛtamavajñātaṃ
tattāmasamudāhṛtam |
--
(adeśakāle yat dānam
apātrebhyaḥ ca dīyate |
asatkṛtam avajñātam
tat tāmasam udāhṛtam ||)
--
Meaning :
The help / charity given out without proper and due respect / regard, or offered with insult, without consideration of the place, time or to the one, not fit for the same, is called of the tāmasa kind.
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अध्याय 17, श्लोक 22,
अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते ।
असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम् ।
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(अदेशकाले यत् दानम् अपात्रेभ्यः च दीयते ।
असत्कृतम् अवज्ञातम् तत् तामसम् उदाहृतम् ॥)
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भावार्थ :
जो दान बिना समुचित सम्मान (सत्कार) किए, या अवहेलनापूर्वक, अनुचित स्थान-काल में या अपात्र के लिए दिया जाता है, उस दान को तामस प्रकार का कहा जाता है ।
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Chapter 17, śloka 22,
adeśakāle yaddāna-
mapātrebhyaśca dīyate |
asatkṛtamavajñātaṃ
tattāmasamudāhṛtam |
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(adeśakāle yat dānam
apātrebhyaḥ ca dīyate |
asatkṛtam avajñātam
tat tāmasam udāhṛtam ||)
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Meaning :
The help / charity given out without proper and due respect / regard, or offered with insult, without consideration of the place, time or to the one, not fit for the same, is called of the tāmasa kind.
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