Saturday, October 18, 2014

आज का श्लोक, ’योगसञ्ज्ञितम्’ / ’yogasaṃjñitam’

आज का श्लोक,
’योगसञ्ज्ञितम्’  / ’yogasaṃjñitam’ 
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’योगसञ्ज्ञितम्’  / ’yogasaṃjñitam’ - जिसे योग कहा जाता है, योग नामक वस्तु,

अध्याय 6, श्लोक 23,

तं विद्याद्दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम्
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णमानसः ।
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(तम् विद्यात् दुःखसंयोग-वियोगम् योगसञ्ज्ञितम्
सः निश्चयेन योक्तव्यः योगः अनिर्विण्णमानसः ॥)
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भावार्थ :
जो दुःख के संयोग से विरहित है -अर्थात् जिसमें दुःख का नितान्त अभाव है, जिसे योग की संज्ञा दी जाती है -अर्थात् जो ऐसा योग है, उसे इस प्रकार से निश्चयपूर्वक जानकर, उस योग को धैर्यसहित, बिना उकताए, अथक् प्रयास सहित, उत्साहपूर्ण चित्त से सिद्ध किया जाना चाहिए ।
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’योगसञ्ज्ञितम्’ / ’yogasaṃjñitam’   -what is named as 'yoga'. what is called 'yoga',

Chapter 6, śloka 23,

taṃ vidyādduḥkhasaṃyoga-
viyogaṃ yogasañjñitam |
sa niścayena yoktavyo 
yogo:'nirviṇṇamānasaḥ |
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(tam vidyāt duḥkha-saṃyoga-
viyogam yogasañjñitam |
saḥ niścayena yoktavyaḥ 
yogaḥ anirviṇṇamānasaḥ ||)
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Meaning :
Know what is named 'yoga', is that which results in the end of association of sorrow. This should be carefully understood with conviction that such a state is achieved by firm resolve, untiring and zealous spirit.
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