Saturday, October 18, 2014

आज का श्लोक, ’योगसंन्यस्तकर्माणम्’ / ’yogasaṃnyastakarmāṇam’

आज का श्लोक,
’योगसंन्यस्तकर्माणम्’ / 
’yogasaṃnyastakarmāṇam’
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’योगसंन्यस्तकर्माणम्’ / ’yogasaṃnyastakarmāṇam’ -जिसने योग का आश्रय लेते हुए कर्मों का सम्यक् न्यास कर दिया है उसको,

अध्याय 4, श्लोक 41,

योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसञ्छिन्नसंशयम् ।
आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ॥
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(योगसंन्यस्तकर्माणम् ज्ञानसञ्छिन्नसंशयम् ।
आत्मवन्तम् न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ॥)
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भावार्थ :
जिसने योग के अनुष्ठान (आचरण) के द्वारा कर्मों का समग्रतः न्यास कर दिया है, तथा ज्ञान के द्वारा जिसने सम्पूर्ण संशय का निवारण कर दिया है, उस आत्मवान को हे धनञ्जय (अर्जुन)! कर्म नहीं बाँधते ।    
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टिप्पणी :
(योगसंन्यस्तकर्माणम् > संन्यस्तानि कर्माणि येन, तम्) - जिसके द्वारा कर्म का समग्रतः न्यास कर दिया गया है, -उसको,

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’योगसंन्यस्तकर्माणम्’ / ’yogasaṃnyastakarmāṇam’ - To one, who has by practicing yoga has disposed of His all action (karma)

Chapter 4, śloka 41,

yogasaṃnyastakarmāṇaṃ 
jñānasañchinnasaṃśayam |
ātmavantaṃ na karmāṇi
nibadhnanti dhanañjaya ||
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(yogasaṃnyastakarmāṇam 
jñānasañchinnasaṃśayam |
ātmavantam na karmāṇi
nibadhnanti dhanañjaya ||)
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Meaning :
O dhanañjaya (arjuna)! Action (karma) no more binds the one, who has disposed of his allotted duties well, has done conscientious discharge of all his legitimate duties, and has, by means of wisdom, got cleared all his doubt (saṃśaya).
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