आज का श्लोक,
’योक्तव्यः’ / ’yoktavyaḥ’
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’योक्तव्यः’ / ’yoktavyaḥ’ - योग के माध्यम से प्राप्त किए जाने के लिए उपयुक्त,
अध्याय 6, श्लोक 23,
तं विद्याद्दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् ।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णमानसः ।
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(तम् विद्यात् दुःखसंयोग-वियोगम् योगसञ्ज्ञितम् ।
सः निश्चयेन योक्तव्यः योगः अनिर्विण्णमानसः ॥)
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भावार्थ :
जो दुःख के संयोग से विरहित है -अर्थात् जिसमें दुःख का नितान्त अभाव है, जिसे योग की संज्ञा दी जाती है -अर्थात् जो ऐसा योग है, उसे इस प्रकार से निश्चयपूर्वक जानकर, उस योग को धैर्यसहित, बिना उकताए, अथक प्रयास सहित, उत्साहपूर्ण चित्त से सिद्ध किया जाना चाहिए ।
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’योक्तव्यः’ / ’yoktavyaḥ’
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’योक्तव्यः’ / ’yoktavyaḥ’ - योग के माध्यम से प्राप्त किए जाने के लिए उपयुक्त,
अध्याय 6, श्लोक 23,
तं विद्याद्दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् ।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णमानसः ।
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(तम् विद्यात् दुःखसंयोग-वियोगम् योगसञ्ज्ञितम् ।
सः निश्चयेन योक्तव्यः योगः अनिर्विण्णमानसः ॥)
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भावार्थ :
जो दुःख के संयोग से विरहित है -अर्थात् जिसमें दुःख का नितान्त अभाव है, जिसे योग की संज्ञा दी जाती है -अर्थात् जो ऐसा योग है, उसे इस प्रकार से निश्चयपूर्वक जानकर, उस योग को धैर्यसहित, बिना उकताए, अथक प्रयास सहित, उत्साहपूर्ण चित्त से सिद्ध किया जाना चाहिए ।
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’योक्तव्यः’ / ’yoktavyaḥ’ - worth attained by following the discipline of yoga,
Chapter 6, śloka 23,
taṃ vidyādduḥkhasaṃyoga-
viyogaṃ yogasañjñitam |
sa niścayena yoktavyo
yogo:'nirviṇṇamānasaḥ |
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(tam vidyāt duḥkha-saṃyoga-
viyogam yogasañjñitam |
saḥ niścayena yoktavyaḥ
yogaḥ anirviṇṇamānasaḥ ||)
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Meaning :
Know what is named 'yoga', is that which results in the end of association of sorrow. This should be carefully understood with conviction that such a state is achieved by firm resolve, untiring and zealous spirit.
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