Friday, April 11, 2014

आज का श्लोक, ’साधिभूताधिदैवं’ / 'sAdhibhUtAdhidaivaM',

आज का श्लोक, ’साधिभूताधिदैवं’ / 'sAdhibhUtAdhidaivaM',
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’साधिभूताधिदैवं’ / 'sAdhibhUtAdhidaivaM', - समस्त अधिभूतों के अधिदैव(त्) को ।

अध्याय 7, श्लोक 30,
साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः ।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥
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(साधिभूताधिदैवम् माम् साधियज्ञम् च ये विदुः ।
प्रयाणकाले अपि च माम् ते विदुः युक्तचेतसः ॥)
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भावार्थ :
जो मनुष्य अधिभूत तथा अधिदैवसहित मुझे / मेरे स्वरूप को अन्तकाल में भी जानते हैं, वे मुझमें समाहित चित्त हुए मुझे अवश्य ही जानते हैं अर्थात् प्राप्त हो जाते हैं ।
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टिप्पणी :
1. अधिभूत, अधियज्ञ तथा अधिदैव के बारे में अध्याय 8 के श्लोक 4 में अधिक अच्छी तरह बतलाया गया है ।
2. ’विद्’ धातु को 4 अर्थों में प्रयोग किया जाता है, ’विदुः’ ’अदादिगण’ की दृष्टि से लट्-लकार  प्रथम (अन्य) पुरुष बहुवचन है । अर्थ है : (वे) जानते हैं । पर्याय से विद् धातु के 4 अर्थ क्रमशः - जानना, होना, पाना, और कहना  हैं । ’ब्रह्म को जानकर ब्रह्म हो जाना’ जहाँ ’जानना’ कोई ’सूचनात्मक ज्ञान’ नहीं होता । ब्रह्म स्वयं ही ज्ञानस्वरूप है, अर्थात् ’जानना’ ब्रह्म का ही यथार्थ है ।
इसलिए उपरोक्त श्लोक में 'विदुः' का तात्पर्य है परमात्मा को जानते हुए वही हो रहना ।
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’साधिभूताधिदैवं’ / 'sAdhibhUtAdhidaivaM', -The preciding deity that supports all material aspect of existance.

Chapter 7, shloka 30,
sAdhibhUtAdhidaivaM mAM
sAdhiyajnaM cha ye viduH |
prayANakAle'pi cha mAM
te viduryuktachetasaH ||
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Meaning :
Through their constant remembrance of ME, those who attain ME, and see ME as the ultimate spiritual power that supports all matter and material. Those, who know ME the source of All Cosmic Intelligence, and The Lord of All sacrifices, are always in ME, They are the Wise.
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