Saturday, April 26, 2014

आज का श्लोक, ’सः’ / ’saḥ’ (11)

आज का श्लोक, ’सः’ / ’saḥ’ (11)
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’सः’ / ’saḥ’ - वह,

अध्याय 11, श्लोक 14,
ततः विस्मयाविष्टो  हृष्टरोमा धनञ्जयः ।
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत  ॥
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(ततः सः विस्मयाविष्टः हृष्टरोमाः धनञ्जयः ।
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिः अभाषत ॥)
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भावार्थ :
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तब विस्मय से आविष्ट हृष्टरोम धनञ्जय (अर्जुन) ने सिर झुकाकर दोनों हथेलियों की अञ्जलि बनाते हुए भगवान् को प्रणाम करते हुए यह कहा , …।
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अध्याय 11, श्लोक 55,
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मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः ।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः मामेति पाण्डव ॥
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(मत्कर्म-कृत्-मत्परमः मद्भक्तः सङ्गवर्जितः ।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः सः माम् एति पाण्डव ॥)
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भावार्थ :
हे पाण्डुपुत्र अर्जुन! जो पुरुष मेरे लिए ही (प्रारब्धवश प्राप्त हुए) आसक्तिरहित होकर, सम्पूर्ण कर्मों को करता है (और उन्हें मुझे ही अर्पित करता है), जो सभी प्राणियों से वैररहित है, ऐसा मेरा वह भक्त मुझे ही प्राप्त होता है ।
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’सः’ / ’saḥ’ - He,

Chapter 11, shloka 14,

tataḥ sa vismayāviṣṭo
hṛṣṭaromā dhanañjayaḥ |
praṇamya śirasā devaṃ
kṛtāñjalirabhāṣata  ||
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(tataḥ saḥ vismayāviṣṭaḥ
hṛṣṭaromāḥ dhanañjayaḥ |
praṇamya śirasā devaṃ
kṛtāñjaliḥ abhāṣata ||)
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Meaning :
Filled with amazement, and his hair standing on end, bowing his head, with folded hands,
Arjuna said thus; ... ...
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Chapter 11, shloka 55,

matkarmakṛnmatparamo
madbhaktaḥ saṅgavarjitaḥ |
nirvairaḥ sarvabhūteṣu
yaḥ sa māmeti pāṇḍava ||
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(matkarma-kṛt-matparamaḥ
madbhaktaḥ saṅgavarjitaḥ |
nirvairaḥ sarvabhūteṣu
yaḥ saḥ mām eti pāṇḍava ||)
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Meaning :
One Who dedicates all actions to Me, Who works for Me only, Who is committed to Me, devoid of all attachment, and having enmity with no one, attains Me O pāṇḍava (arjuna)!
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