Saturday, April 5, 2014

आज का श्लोक, ’सुकृतम्’ / 'sukRtaM'

आज का श्लोक, ’सुकृतम्’ / 'sukRtaM'
_____________________________

’सुकृतम्’ / 'sukRtaM' - पुण्यकर्म,

अध्याय 5, श्लोक 15,

नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः ।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः ॥
--
( न आदत्ते कस्यचित् पापम् न च एव सुकृतम् विभुः ।
अज्ञानेन आवृतम् ज्ञानम् तेन मुह्यन्ति जन्तवः ॥)
--
भावार्थ :
न तो विधाता (परमेश्वर) किसी के पापकर्म को और न ही किसी के पुण्यकर्म को ग्रहण करता है, (अर्थात् विधाता की दृष्टि में न तो कोई पाप करता है और न ही पुण्य) किन्तु ज्ञान पर अज्ञान का आवरण होने से भ्रमवश, उस अज्ञान से मोहित होकर जीव अपने-आपको उन कर्मों का कर्ता समझ बैठता है ।
--
 
’सुकृतम्’ / 'sukRtaM' - noble deeds,
--
nAdatte kasyachitpApaM
na chaiva sukRtaM vibhuH |
ajnAnenAvRtaM jnAnaM
tena muhyanti jantavaH ||
--
Meaning :
The Supreme Lord owns neither the sinful deeds of men, nor does He own their virtuous deeds, but because the Wisdom is covered under the veil of ignorance, men tend to fall prey to delusion (and so believe themselves responsible for the good or the bad deeds, which they think they do).
--

No comments:

Post a Comment