Monday, April 7, 2014

आज का श्लोक, ’सिद्धसंघाः’ / 'siddhasanghAH',

आज का श्लोक, ’सिद्धसंघाः’ / 'siddhasanghAH',
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’सिद्धसंघाः’ / 'siddhasanghAH' - सिद्धों के संघ

अध्याय 11, श्लोक 36,
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स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या
जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते  ।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति
सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः  ॥
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भावार्थ :
हे हृषीकेश  ! तुममें ही तुम्हारे ही भीतर, संपूर्ण जगत् तुम्हारी विशिष्ट कीर्ति के में प्रहर्षित होता है, तुममें ही खेलता रमता है । राक्षसगण भी डरकर भी तुममें ही अवस्थित विभिन्न दिशाओं में दौड़ते हैं  और सिद्धों के सभी संघ भी तुममें ही तुम्हें नमन करते हैं ।
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 ’सिद्धसंघाः’ / 'siddhasanghAH' - sages and seers


Chapter 11, shloka 36.

sthAne hRShIkesha tava prakIrtyA
jagat-prahRShyatyanurajyate |
rakShAnsi bhItAni disho dravanti
sarve namasyanti cha siddhasanghAH ||
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Meaning :
O Lord of the senses, Indeed the whole world has existence within You, and it rejoices and sports within you only because of your glory. Demons frightened, run in all directions, and the sages and seers bow down before Thee!
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