Wednesday, April 23, 2014

आज का श्लोक, ’सः’ / ’saḥ’ (17)

आज का श्लोक, ’सः’ / ’saḥ’,
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’सः’ / ’saḥ’   - वह,

अध्याय 17, श्लोक 3,

सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत ।
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः एव सः
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(सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत ।
श्रद्धामयः अयम् पुरुषः यः यत्-श्रद्धः सः एव सः
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भावार्थ :
हे भारत! सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त एवं ’मैं’-भावना रूपी चतुष्टय तथा उनका अधिष्ठान साक्षी-बुद्धि / शुद्ध चेतनता) के अनुरूप हुआ करती है । यह पुरुष श्रद्धामय है, अतएव जो पुरुष जैसी श्रद्धावाला है, वह स्वयं भी वही है ।
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टिप्पणी:
चूँकि श्रद्धा अन्तःकरण से अभिन्न है, इसलिए जैसा अन्तःकरण होता है, मनुष्य भी बिल्कुल वही होता है । इसीलिए मनुष्य में श्रद्धा भी सात्त्विकी, तामसी या राजस या उन तीनों गुणों की उपस्थिति के अनुसार भिन्न भिन्न प्रकार की होती है ।
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अध्याय 17, श्लोक 11,
अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते ।
यष्टव्यनेवेति मनः समाधाय स सात्त्विकः ॥
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अफलाकाङ्क्षिभिः यज्ञः विधिदृष्टः यः इज्यते ।
यष्टव्यम् एव इति मनः समाधाय सः सात्त्विकः ॥
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भावार्थ :
जो शास्त्रविधि से सम्मत और नियत है, यज्ञ करना ही कर्तव्य है इस प्रकार से मन का समाधान करते हुए, जिसे फल की आकाङ्क्षा न रखते हुए किया जाता है, वह सात्त्विक यज्ञ है ।
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’सः’ / ’saḥ’ - he, that,

Chapter 17, shloka 3,

sattvānurūpā sarvasya
śraddhā bhavati bhārata |
śraddhāmayo:'yaṃ puruṣo
yo yacchraddhaḥ sa eva saḥ ||
__
(sattvānurūpā sarvasya
śraddhā bhavati bhārata |
śraddhāmayaḥ ayam puruṣaḥ
yaḥ yat-śraddhaḥ saḥ eva saḥ ||
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Meaning :
According to the sattva, every-one has the own specific construct of mind (thought, intellect, consciousness and ego, these 4 together form the tendencies and modes of mind, and this is the inherent spontaneous instinct śraddhā, of a man) . This man is verily the śraddhā, so one is of the kind, what-ever and of what-so-ever kind is the inborn tendencies of the mind / śraddhā, he has from the birth.
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Chapter 17, shloka 11,

aphalākāṅkṣibhiryajño
vidhidṛṣṭo ya ijyate |
yaṣṭavyaneveti manaḥ
samādhāya sa sāttvikaḥ ||
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aphalākāṅkṣibhiḥ yajñaḥ
vidhidṛṣṭaḥ yaḥ ijyate |
yaṣṭavyam eva iti manaḥ
samādhāya saḥ sāttvikaḥ ||
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Meaning :
The sacrifice, that is performed because it is a duty without expecting any favorable result, and is in according to the the injunctions of the scriptures, is sāttvika in essence.
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