Friday, April 4, 2014

आज का श्लोक, ’सुखदुःखसञ्ज्ञैः’ / 'sukhaduHkhasanjnaiH'

आज का श्लोक,  ’सुखदुःखसञ्ज्ञैः’ / 'sukhaduHkhasanjnaiH

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’सुखदुःखसञ्ज्ञैः’ / 'sukhaduHkhasanjnaiH' - जिनका नाम सुख अथवा दुःख होता है, उनसे ।

अध्याय 15, श्लोक 5,

निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा
अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः ।
द्वन्द्वैर्विमुक्ता सुखदुःखसञ्ज्ञै
र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत् ॥
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(निर्मान-मोहाः जितसङ्गदोषाः
अध्यात्मनित्याः विनिवृत्तकामाः ।
द्वन्द्वैः विमुक्ताः सुखदुःखसञ्ज्ञैः
गच्छन्ति अमूढाः पदम् अव्ययम् तत् ॥)
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भावार्थ :
जिनका मान (गर्व) और मोह (लिप्तता) नष्ट हो चुका है, जिन्होंने आसक्ति अर्थात् इन्द्रियों के साथ मन के लिप्त होने से उत्पन्न होनेवाले विकारों को जानकर उन पर विजय प्राप्त कर ली है, जिनकी स्थिति सदा परमात्मा के नित्यस्वरूप में स्थिर रहती है, और जिनकी कामनाएँ भली-भाँति विलीन हो चुकी हैं, सुख-दुःख तथा ऐसे दूसरे सभी द्वन्द्वों से जो छूट चुके हैं ऐसे ज्ञानीजन उस अविनाशी परम पद को प्राप्त हो जाते हैं ।
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’सुखदुःखसञ्ज्ञैः’ / 'sukhaduHkhasanjnaiH' - differences of the opposites, like happiness and distress,

Chapter 15, shloka 5,

nirmAnamohA jitasangadopShA
adhyAtmanityA vinivRttakAmAH |
dvandvairvimuktAH sukhaduHkhasanjnaiH
gachCantyamUDhAH padamavyayaM tat ||
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Meaning :
Free from pride, arrogance and delusion, having overcome the evils of association of the senses with their objects of enjoyments, abiding ever in The Primal Self, realesed from the clutches of desires, Freed from the differences of the opposites like happiness and distress, The Wise attain the State Supreme of the Brahman That is imperishable.
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