आज का श्लोक, ’साङ्ख्ययोगौ’ / 'sAMkhyayogau',
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’साङ्ख्ययोगौ’ / 'sAMkhyayogau', - सांख्य एवं योग,
अध्याय 5, श्लोक 4,
साङ्ख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः ।
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥
--
(साङ्ख्य-योगौ पृथक्-बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः ।
एकम् अपि आस्थितः सम्यक् उभयोः विन्दते फलम् ॥)
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भावार्थ :
साङ्ख्य -सिद्धान्त और योग - सिद्धान्त, एक दूसरे से भिन्न हैं ऐसा बालबुद्धि, अपरिपक्व बुद्धिवाले ही कहते हैं, न कि (तत्वदर्शी) पण्डित । (क्योंकि) एक का भी भली-भाँति निर्वाह करनेवाला उसी एक फल की प्राप्ति करता है जो उन दोनों के अलग अलग पालन से भी प्राप्त हो जाता है ।
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’साङ्ख्ययोगौ’ / 'sAMkhyayogau', - The sAMkhya way and the Yoga way towards spiritual goal.
Chapter 5, shloka 4,
sAMkhyayogau pRthagbAlAH
pravadanti na paNditAH |
ekamapyAsthitaH samyag-
ubhayorvindate phalaM ||
--
Only those of immature mind say that sAMkhya (way of deducing and finding out the Truth) and Yoga, (way of practicing 'Action' in the most appropriate way, so that it may help one make free from ignorance of the Reality) are different to each-other. The ripe seers never say so. Because practicing any of the two disciplines leads to the same goal (of Self-Realization).
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’साङ्ख्ययोगौ’ / 'sAMkhyayogau', - सांख्य एवं योग,
अध्याय 5, श्लोक 4,
साङ्ख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः ।
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥
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(साङ्ख्य-योगौ पृथक्-बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः ।
एकम् अपि आस्थितः सम्यक् उभयोः विन्दते फलम् ॥)
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भावार्थ :
साङ्ख्य -सिद्धान्त और योग - सिद्धान्त, एक दूसरे से भिन्न हैं ऐसा बालबुद्धि, अपरिपक्व बुद्धिवाले ही कहते हैं, न कि (तत्वदर्शी) पण्डित । (क्योंकि) एक का भी भली-भाँति निर्वाह करनेवाला उसी एक फल की प्राप्ति करता है जो उन दोनों के अलग अलग पालन से भी प्राप्त हो जाता है ।
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’साङ्ख्ययोगौ’ / 'sAMkhyayogau', - The sAMkhya way and the Yoga way towards spiritual goal.
Chapter 5, shloka 4,
sAMkhyayogau pRthagbAlAH
pravadanti na paNditAH |
ekamapyAsthitaH samyag-
ubhayorvindate phalaM ||
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Only those of immature mind say that sAMkhya (way of deducing and finding out the Truth) and Yoga, (way of practicing 'Action' in the most appropriate way, so that it may help one make free from ignorance of the Reality) are different to each-other. The ripe seers never say so. Because practicing any of the two disciplines leads to the same goal (of Self-Realization).
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