Wednesday, April 2, 2014

आज का श्लोक, ’सुखस्य’ / 'sukhasya'

आज का श्लोक, ’सुखस्य’ / 'sukhasya'
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’सुखस्य’ / 'sukhasya' - सुख की,

अध्याय 14, श्लोक 27,

ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च ।
शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च ॥
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(ब्रह्मणः हि प्रतिष्ठा-अहम्-अमृतस्य-अव्ययस्य च ।
शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्य-एकान्तिकस्य च ॥
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भावार्थ :
जिसे वेदों में ब्रह्म कहा जाता है, जिसकी मृत्यु नहीं है, जो अनन्त अक्षय है, शाश्वत् है, आनन्द जिसका धर्म है, तथा एक (और अनेक) की कोटि से विलक्षण है - इसलिए एकान्तिक अर्थात् परम आत्यन्तिक है, उसकी प्रतिष्ठा अर्थात् स्वाभाविक धाम, अहं अर्थात् आत्मा / परमात्मा (है) ।
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’सुखस्य’ / 'sukhasya' -  of Bliss,

Chapter 14, shloka 27,

brahmaNo hi pratiShThAham-
amRtasyAvyayasya cha |
shAshvatasya cha dharmasya
sukhasyaikAntikasya cha ||
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Meaning :
Literally, 'I AM' the abode and the only support of Brahman, That Which is Deathless and imperishable, Which is Eternal, And the spontaneous Bliss / Joy of the Ultimate.
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