Thursday, April 10, 2014

आज का श्लोक, ’साम्ये’ / 'sAmye',

आज का श्लोक, ’साम्ये’ / 'sAmye',
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’साम्ये’ / 'sAmye' - समभाव में,

अध्याय 5, श्लोक 19,
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इहैव तैर्जितो सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥
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(इह-एव तैः जितः सर्गः येषाम् साम्ये स्थितम् मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्मात् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥)
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जिनका मन समभाव में स्थित हो जाता है उनके द्वारा इस (जीवित अवस्था में ही) संसार जीत लिया जाता है, क्योंकि वे संसार के बंधन से मुक्त होते हैं, और चूँकि वे ब्रह्म में अवस्थित होते हैं, इसलिए सच्चिदानन्घन परमात्मा में स्थित हुए वे ब्रह्मस्वरूप, सम और निर्दोष होते हैं ।
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’साम्ये’ / 'sAmye' - equipoise of mind, evenness of mind in opposites,

Chapter 5, shloka 19,
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ihaiva tairjitaH sargo
yeShAM sAmye sthitaM manaH |
nirdoShaM hi samaM brahma
tasmAdbrahmaNi te sthitAH ||
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Meaning :
Those who have attained the equipoise of mind have conquered over the crisis of existing in a world full of sorrow and ignorance. They have attained identity with Brahman and are thus stainless and impartial in Him.
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