Friday, April 11, 2014

आज का श्लोक, ’साधुभावे’ / 'sAdhubhAve',

आज का श्लोक, ’साधुभावे’ / 'sAdhubhAve',
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’साधुभावे’ / 'sAdhubhAve', - उत्तमता और पवित्रता के अर्थ में,
 
अध्याय 17, श्लोक 26,

सद्भावे साधुभावे च सदित्येतत्प्रयुज्यते ।
प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते ॥
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(सद्भावे साधुभावे च सत्-इति-एतत्-प्रयुज्यते ।
प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते ॥)
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’सत्’ (परमात्मा के इस नाम का) प्रयोग सत्यभाव में (सत्यता की भावना सहित) और श्रेष्ठता के तात्पर्य में किया जाता है । इसी प्रकार कर्म की उत्तमता के सूचक के रूप में भी इसका व्यवहार होता है ।
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’साधुभावे’ / 'sAdhubhAve', - in purity and auspiciousness of the purpose and action.

Chapter 17, shloka 26,
sadbhAve sAdhubhAve cha
sadityetatprayujyate |
prashaste karmaNi tathA
sachChhabdaH pArtha yujyate ||
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Meaning :
O parth (arjuna)! the word 'sat'(essence) is applied to express the Reality, and also the earnestness, sincerity, auspiciousness, and the purity of the purpose. Therefore this word 'sat' is used to remind all those aspects of Truth. This word 'sat' is again used to denote the goodness and virtue of the way a noble deed is performed.
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