Saturday, February 8, 2014

आज का श्लोक, 'हनिष्ये' / 'haniShye'

आज का श्लोक / 'हनिष्ये' / 'haniShye'
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'हनिष्ये' / 'haniShye' - 'हन्' धातु, भविष्यत् काल, उत्तम पुरुष एकवचन , 'मारूँगा' के अर्थ में     
अध्याय 16, श्लोक 14,
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असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि ।
ईश्वरोsहमहं  भोगी सिद्धोsहं  बलवान्सुखी ॥
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(असौ मया हतः शत्रुः हनिष्ये च अपरानपि ।
ईश्वरः अहं अहं भोगी सिद्धः अहं बलवान् सुखी ॥)
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भावार्थ :
वह शत्रु मेरे द्वारा मारा जा चुका, दूसरों को भी मार डालूँगा । मैं ही सर्वशक्तिमान हूँ, मैं ही सब सुखों का भोगकर्ता हूँ । मैं ही यशस्वी, बलवान और सुखी हूँ ।
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'हनिष्ये' / 'haniShye' - (I) shall kill.
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Chapter 16, shloka 14,
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asau mayA hataH shatrur-
haniShye chAparAnapi |
Ishvaro'hamahaM bhogI
siddho'haM balavAnsukhI ||
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Meaning : That one enemy has been killed by me, I shall sure kill the others too. I am the lord, I alone enjoy all the riches, I am successful, powerful and happy.
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