आज का श्लोक, 'स्वाध्यायः' / 'swAdhyAyaH'
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अध्याय 16, श्लोक 1,
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अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः ।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम ॥
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(अभयं सत्त्वसंशुद्धिः ज्ञान-योग-व्यवस्थितिः ।
दानं दमः च यज्ञः च स्वाध्यायः तपः आर्जवम ॥)
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'स्वाध्यायः' / 'swAdhyAyaH' -
('स्व+अधि+अयनं ' -
'स्व' अर्थात् 'मैं', 'अहं', जिस शब्द को हमारे यथार्थ तत्व और आभासी परिचय दोनों के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
'अधि' अर्थात् जो पूर्व से विद्यमान है।
'अयनं' अर्थात् 'की दिशा में जाना' / 'अनुसन्धान'
इसलिए स्वाध्याय का तात्पर्य हुआ 'आत्मानुसंधान' जिसे बोलचाल के शब्दों में कहेंगे :
'मैं कौन (हूँ)?' इस बारे में जिज्ञासा होना / जानना समझना ।)
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भावार्थ :
निर्भयता, चित्तशुद्धि (संशयरहित बुद्धि), और ज्ञान-योगसाधना में भलीभाँति संलग्न रहना, दान, इंद्रियों और मन पर नियंत्रण होना, यज्ञकर्म, स्वाध्याय तप और मन-बुद्धि की निश्छलता।
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'स्वाध्यायः' / 'swAdhyAyaH''
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Chapter 16, shloka 1,
abhayaM sattva-sanshuddhir-
jnAnayogavyavasthitiH |
dAnaM damashcha yajnashcha
swAdhyAyaH tapa ArjavaM ||
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'स्वाध्यायः' / 'swAdhyAyaH' - 'Self-Enquiry',
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Meaning :
Absence of fear, purity of mind, perseverance in 'Self-Enquiry' and consistent practice of keeping attention fixed in the Self, meditating upon this 'Self', charity, self-control, sacrifice, study of scriptures with a view to understand the nature of the 'Self', austerity, clarity and simplicity of mind.
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अध्याय 16, श्लोक 1,
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अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः ।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम ॥
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(अभयं सत्त्वसंशुद्धिः ज्ञान-योग-व्यवस्थितिः ।
दानं दमः च यज्ञः च स्वाध्यायः तपः आर्जवम ॥)
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'स्वाध्यायः' / 'swAdhyAyaH' -
('स्व+अधि+अयनं ' -
'स्व' अर्थात् 'मैं', 'अहं', जिस शब्द को हमारे यथार्थ तत्व और आभासी परिचय दोनों के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
'अधि' अर्थात् जो पूर्व से विद्यमान है।
'अयनं' अर्थात् 'की दिशा में जाना' / 'अनुसन्धान'
इसलिए स्वाध्याय का तात्पर्य हुआ 'आत्मानुसंधान' जिसे बोलचाल के शब्दों में कहेंगे :
'मैं कौन (हूँ)?' इस बारे में जिज्ञासा होना / जानना समझना ।)
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भावार्थ :
निर्भयता, चित्तशुद्धि (संशयरहित बुद्धि), और ज्ञान-योगसाधना में भलीभाँति संलग्न रहना, दान, इंद्रियों और मन पर नियंत्रण होना, यज्ञकर्म, स्वाध्याय तप और मन-बुद्धि की निश्छलता।
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'स्वाध्यायः' / 'swAdhyAyaH''
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Chapter 16, shloka 1,
abhayaM sattva-sanshuddhir-
jnAnayogavyavasthitiH |
dAnaM damashcha yajnashcha
swAdhyAyaH tapa ArjavaM ||
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'स्वाध्यायः' / 'swAdhyAyaH' - 'Self-Enquiry',
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Meaning :
Absence of fear, purity of mind, perseverance in 'Self-Enquiry' and consistent practice of keeping attention fixed in the Self, meditating upon this 'Self', charity, self-control, sacrifice, study of scriptures with a view to understand the nature of the 'Self', austerity, clarity and simplicity of mind.
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