Sunday, February 23, 2014

आज का श्लोक, ’स्वबान्धवान्’ / 'swabAndhavAn'

आज का श्लोक, ’स्वबान्धवान्’ / 'swabAndhavAn'
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’स्वबान्धवान्’ / 'swabAndhavAn' - अपने बन्धुओं को

अध्याय 1, श्लोक 37,
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तस्मान्नार्हा  वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधवः ॥
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(तस्मात् न अर्हाः वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान् स्वबान्धवान्
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधवः ॥)
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भावार्थ :
अतएव हमारे लिए यह उचित नहीं कि हम अपने स्वबन्धुओं, इन धृतराष्ट्रपुत्रों को मारें । हे माधव ! अपने ही स्वजनों को मारकर हम कैसे सुखी होंगे?
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’स्वबान्धवान्’ / 'swabAndhavAn' - To our own brethren,
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Chapter 1, shloka 37,
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tasmAnnArhA vayaM hantuM
dhArtarAShTrAnswabAndhavAn
swajanaM hi kathaM hatvA
sukhinaH syAma mAdhava ||
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Meaning :
Therefore, it is not right to kill the sons of dhRtarAShTra, our own kin and relatives, for how can we hope happiness by killing our own people? O Madhava?
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