आज का श्लोक, ’स्वभावप्रभवैर्गुणैः’ / 'swabhAvaprabhavairguNaiH'
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’स्वभावप्रभवैर्गुणैः’ / 'swabhAvaprabhavairguNaiH' - स्वभाव से उत्पन्न गुणों के द्वारा,
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अध्याय 18, श्लोक 41 ,
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ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप ।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः ॥
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(ब्राह्मणक्षत्रियविशाम् शूद्राणाम् च परंतप ।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैः गुणैः ॥)
भावार्थ :
हे परंतप (अर्जुन)! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों के द्वारा विभक्त / निर्धारित किए गए हैं ।
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’स्वभावप्रभवैर्गुणैः’ / 'swabhAvaprabhavairguNaiH'
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Chapter 18, shloka 41,
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brAhmaNakShatryavishAM
shUdrANAM cha parantapa |
karmANi pravibhaktAni
swabhAvaprabhavairguNaiH ||
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Meaning : The duties of one belonging to the spiritual, warrior, merchant or the service class are distinguished according to their own specific natural qualities / inborn tendencies and in accordance with the material mode (guNa) they are born with.
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’स्वभावप्रभवैर्गुणैः’ / 'swabhAvaprabhavairguNaiH' - स्वभाव से उत्पन्न गुणों के द्वारा,
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अध्याय 18, श्लोक 41 ,
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ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप ।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः ॥
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(ब्राह्मणक्षत्रियविशाम् शूद्राणाम् च परंतप ।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैः गुणैः ॥)
भावार्थ :
हे परंतप (अर्जुन)! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों के द्वारा विभक्त / निर्धारित किए गए हैं ।
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’स्वभावप्रभवैर्गुणैः’ / 'swabhAvaprabhavairguNaiH'
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Chapter 18, shloka 41,
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brAhmaNakShatryavishAM
shUdrANAM cha parantapa |
karmANi pravibhaktAni
swabhAvaprabhavairguNaiH ||
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Meaning : The duties of one belonging to the spiritual, warrior, merchant or the service class are distinguished according to their own specific natural qualities / inborn tendencies and in accordance with the material mode (guNa) they are born with.
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