Monday, February 24, 2014

आज का श्लोक, 'स्वधर्मे' / 'swadharme'

आज का श्लोक, 'स्वधर्मे' / 'swadharme
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'स्वधर्मे'/ 'swadharme' - अपने वर्ण, आश्रम के अनुसार निर्देशित वेदविहित अपने धर्म का पालन करते हुए ।
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अध्याय 3, श्लोक 35,
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श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥
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(श्रेयान्-स्वधर्मः विगुणः परधर्मात्-स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥
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भावार्थ :
अच्छी प्रकार से  आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म से अपने अल्प या विपरीत गुणवाले धर्म का आचरण उत्तम है, क्योंकि जहाँ एक ओर अपने धर्म का आचरण करते हुए मृत्यु को प्राप्त हो जाना भी कल्याणप्रद होता है, वहीं दूसरे के धर्म का आचरण भय का ही कारण होता है ।
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'स्वधर्मे' /  'swadharme' - following one's own 'dharma' as is directed in the veda / scriptures.
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Chapter 3, shloka 35,
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shreyAnswadharmo viguNaH
paradharmAtswanuShThitAt |
swadharme nidhanaM shreyaH
paradharmo bhayAvahaH ||
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Meaning :
Though has not merits, it is far better to follow one's own way of 'dharma', than to follow and act upon the duties of another's 'dharma'. Even the death while pursuing own 'dharma', results in the ultimate good, where-as practicing another's 'dharma' is just horrific.
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