आज का श्लोक / 'हन्त' / 'hanta'
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अध्याय 10, श्लोक 19,
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हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्म विभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥
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(हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या: हि आत्म-विभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ न अस्ति अन्तः विस्तरस्य मे ॥ )
*
हन्त - अब,
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भावार्थ :
हे कुरुवंश में श्रेष्ठ अर्जुन! अब मैं तुमसे देवलोक में स्थित मेरी विभूतियों में से कुछ का प्रधानता से वर्णन करूँगा, क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है।
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'हन्त' / 'hanta', - Now, henceforth.
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Chapter 10, shloka 19,
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hanta te kathayiShyAmi
divyA hyAtmavibhUtayaH |
prAdhAnyataH kurushreShTha
nAstyanto vistarasya me ||
*
Now, O KurushreshreShTha Arjuna! I will tell you summarily about a few most important and prominent aspects of My Divine Reality, because there is no end to the Magnitude of My Glory and the aspects that are there in Me.
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अध्याय 10, श्लोक 19,
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हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्म विभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥
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(हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या: हि आत्म-विभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ न अस्ति अन्तः विस्तरस्य मे ॥ )
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हन्त - अब,
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भावार्थ :
हे कुरुवंश में श्रेष्ठ अर्जुन! अब मैं तुमसे देवलोक में स्थित मेरी विभूतियों में से कुछ का प्रधानता से वर्णन करूँगा, क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है।
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'हन्त' / 'hanta', - Now, henceforth.
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Chapter 10, shloka 19,
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hanta te kathayiShyAmi
divyA hyAtmavibhUtayaH |
prAdhAnyataH kurushreShTha
nAstyanto vistarasya me ||
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Now, O KurushreshreShTha Arjuna! I will tell you summarily about a few most important and prominent aspects of My Divine Reality, because there is no end to the Magnitude of My Glory and the aspects that are there in Me.
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