Monday, February 3, 2014

आज का श्लोक / 'हविः' /'haviH'

आज का श्लोक / 'हविः' /'haviH'
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अध्याय 4, श्लोक 24,
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ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥
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(ब्रह्म-अर्पणं ब्रह्म-हविः ब्रह्म-अग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्म एव तेन गन्तव्यं ब्रह्म-कर्म-समाधिना ॥)
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हविः - हवन में अर्पित की गई सामग्री, हव्य ।
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भावार्थ :
ब्रह्म को जाननेवाले की दृष्टि में यज्ञ में किया जानेवाला हवन, हवन में अर्पित हव्य, यज्ञाग्नि, सभी ब्रह्म हैं । वह भी ब्रह्म ही है जिसके द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान किया जाता है । और इस प्रकार के ब्रह्मकर्म के अनुष्ठान से ब्रह्मकर्मरूपी समाधि के द्वारा उसे ब्रह्म की ही प्राप्ति होती है ।
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'हविः' /'haviH'
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Chapter 4, shloka 24,
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brahmArpaNaM brahmahavir-
brahmAgnau brahmaNA hutaM |
brahmaiva tena gantavyaM
brahmakarmasamAdhinA ||
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'हविः' /'haviH' = The offerings made into the Fire of havana.
Meaning : One who knows 'brahman' /Supreme Reality, sees Him everywhere, in the Fire, in the offerings, in the oblation, in the goal and within himself also.
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